सोमवार, 13 जून 2016

मेरे स्वप्न

मेरे स्वप्न गेय नहीं है 
आरोह अवरोह से परे है 
वो अपनी तान,वृत्ति अपने ही 
रस में पूर्णतया लीन है 
ये जो अमराई में खेल रहे है 
वे जो टेसू रंग में भीगे है 
वे जो कागज़ की नाव चला रहे है 
वे जो हरसिंगार हिला है 
यही है मेरे स्वप्न तुम मत देखो 
मेरे स्वप्न भटकते है प्रवाह की खोज में 
मेरे स्वप्नों की आराजकता 
 शान्ति की सम्भावना है 
मेरी एकान्त अनुभूति की अभिव्यक्ति है 
सत्य की पीड़ा का निर्मम सार है 
मेरे स्वप्न सयंम नहीं जानते 
नियम नहीं मानते यथास्थिति का उपहास है  
@मीना गुलियानी 

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