मंगलवार, 26 जुलाई 2016

औरत एक पहेली

औरत की जिंदगी भी  एक पहेली है
सबके होते हुए भी वो अकेली है
तन्हाई में खुद से बात करती है
सबके दुःख दर्द खुद ही सहती है
सबके  सामने वो मुस्कुराती है
मन ही मन दर्द अपने वो छुपाती है
न जाने कितने सपने मन में सँजोती है
चुपके से रात रात भर वो रोती  है
आश्वासन पे कितने पल गुज़ार देती है
अपनी खुशियाँ भी सबपे वार देती है
कभी वो नींद कभी सपने भूल जाती है
सबके लिए खुद सलीब पर झूल जाती  है
उसकी चाहत तो सिर्फ इतनी सी होती है
एक ममत्व स्नेह  की उसे भूख होती है
वक्त वो कब  आके सब छीन लेता है
जिसकी  उम्मीद उसको होती है
हर किसी से स्नेह पाने की ललक में
उसकी  आँखे झरने सी फूट पड़ती है
उसका दर्द किसी ने न  जाना है
हर पल उसका तो इक वीराना है
@मीना गुलियानी 

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