शनिवार, 24 सितंबर 2016

माता की भेंट ---4

मेरी अखियाँ च शेराँ वाली माँ वस गई , नैन खोलां किवें 
मेरे दिल विच ओदी तस्वीर बस गई ,भेद खोला किवें

 लोकी पुछदे तू मुहों क्यों नहीँ बोलदी 
तक दुनियां नू अखां क्यों नहीँ खोलदी 
ऐ सुनके मैं आँख ज़रा होर कस लई 

मैं डरदी हाँ सुरमा वि न पांवदी 
ऐहो गल दिन रात मेनु खावदि 
किदे मइया नू सुरमे दी सलाई लग गई 

मेरे अपने बेगाने ताने मारदे 
ताने मार लेन मेरा की बिगाड़दे 
जान मेरी ता जाणी जान नाल लग गई 

मैं दीवानी गुलाम ओदे दर दी 
नौकरानी हाँ मइया जी दे घर दी 
मेरे नैना च मइया जी दी जोत जग गई 
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें