मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

न सुकून हूँ न करार हूँ

न किसी नज़र का सुरूर हूँ
न किसी के दिल का करार हूँ
जो हवा के झोंके से बुझ गया
वही टूटा हुआ सा चिराग हूँ

मेरा जिस्म भी अब ढल गया
रंग रूप मेरा बदल गया
जिसे आइना देखके डर गया
मैं तो ऐसी फसले बहार हूँ

मेरा अक्स मुझसे बिछुड़ गया
मुझसे तू जो आज बिगड़ गया
दरिया से कतरा बिछुड़ गया
तू है गुल तो मैं इक खार हूँ

कोई मेरे ख्वाबों में आये क्यों
कोई बुझती शमा जलाये क्यों
जो उजड़ गया फिर बसाये क्यों
न सुकून हूँ न करार हूँ
@मीना गुलियानी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें