बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

अपनी सोच से हूँ आज हारा

कैसा छाया हृदय में मेरे गहन अँधियारा 
स्वार्थ के अवगुन्ठनों से भरा संसार सारा 

शक की दीवारों ने जकड़ा है मुझे 
लोग चलते देखकर मुँह को फेरते 

इस गगन के सूर्य चन्द्र की क्या कहें 
मुझको तकता नहीँ कोई भी अब तारा 

मेरी कल्पना भी अथाह बन बैठी है आज 
जलधि की लहर घेरे मेरी देह को आज 

सोचने पर भी मिलता नहीँ कोई किनारा 
तुम ही अपनी प्रीत से करदो उजाले 

सम्भले न मुझसे मेरा दिल अब सम्भाले 
मैं तो खुद अपनी सोच से हूँ आज हारा 
@मीना गुलियानी 

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