सोमवार, 24 अप्रैल 2017

जिंदगी मौत के करीब है

 यहाँ के नज़ारे कितने अजीब हैं
लगता है वक्त ही कमनसीब है

जिंदगी यहाँ  की कितनी  वीरान है
आती जाती साँसे कितनी ज़रीब हैं

मिलने जुलने के सिलसिले भी खत्म हुए
रफीक थे जो कभी अब बने रकीब हैं

सारे आशियाने हमारे उजड़ से गए
लगता है जिंदगी मौत के करीब है
@मीना गुलियानी



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