शनिवार, 22 अप्रैल 2017

झारी भी सूनी पड़ी है

आज केसर की क्यारी सूनी पड़ी है

वो गौरेया कहीं खो सी गई है

ढफ ढोल की धमाधम सूनी पड़ी है

आमों की मंजरियाँ झर सी गई हैं

गाँव की हिरनिया कहीं खोई पड़ी है

दिखते नहीं कोई टेसू के फूल भी अब

गुजरिया भी रास्ता भूले खड़ी है

कैसे गाऊं मै अब फागुन के गीत

रंगों की झारी भी सूनी पड़ी है
@मीना गुलियानी 

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