गुरुवार, 22 जून 2017

सच बोलना भी दरकिनार

मै बहुत कुछ सोचता हूँ पर कहता नहीं
कहना तो क्या सच बोलना भी दरकिनार

अब किसी को दरार नज़र आती नहीं
घर की दीवारों पर हैं पर्दे बेशुमार

कैसे बचकर चलें सूरत नज़र आती नहीं
रहगुज़र घेरे हुए हैं लिए तोहमतें हज़ार

रौनके ज़न्नत भी रास न आई मुझे
सुकूँ मिला था जहन्नुम में बेशुमार
@मीना गुलियानी

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