शनिवार, 5 अगस्त 2017

सर अपना झुकाने लगे हैं

बिना पिए ही कदम लड़खड़ाने लगे हैं
राहों में फिर से डगमगाने लगे हैं

बहारें तो आई थीं कुछ दिल पहले
ख़ुशी दिल में आई हम भी बहले
गुलिस्तां के फूल मुरझाने लगे हैं

सोचा था क्या हमने क्या हो गया है
यकीं जिसपे था बेवफा हो गया है
दिल तसल्लियों से बहलाने लगे हैं

जिए हम अधूरे रहे हम अकेले
जाने कहाँ छूटे खुशियों के मेले
सपनों के फूल बिखराने लगे हैं

करूँ मैं दुआ गर उसको कबूल हो
गुनाह माफ़ करदे जो उसे मंजूर हो
सज़दे में सर अपना झुकाने लगे हैं
@मीना गुलियानि


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