शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

धड़कन कैसे सुन पाओगे

बोलो तो ज़रा मेरे अन्तर्मन कितना मुझको तड़पाओगे
कब तक मैं जिऊँ चुप रहके कब तक मन को बहलाओगे

हर पीड़ा मुझसे पूछती है ये कलियाँ क्यों मुझसे रूठी हैं
तुम जानते हो इनकी भाषा मेरी तो हिम्मत टूटी है
अब तक तो जिए हम घुट घुट के कितना और सताओगे

मैं भूल गई प्यारे सपने गुम हो गए सब जो थे अपने
मोती की माला बिखर गई जिनमें गूँथे थे हर सपने
अब कैसे गाऊँ गीत नए सुर कैसे तुम सुन पाओगे

न साज बजाया जा सकता न गीत कोई दोहरा सकता
अब तुम ही बताओ कैसे अपना दिल मैं बहला सकता
साँसे भी अब थमने को है धड़कन कैसे सुन पाओगे
@मीना गुलियानी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें