मंगलवार, 26 सितंबर 2017

माता की भेंट ---08

ओ दिसदा दरबार पहाड़ां वाली दा 
चल भगता कर दीदार पहाड़ां वाली दा 

दूर दूर तों संगता आइया 
उचिया लंबियाँ चढ़न चढ़ाइयाँ 
हर दिल विच वसदा प्यार --------पहाड़ां वाली दा 

था था पर्वत देंण नज़ारे 
पत्थरां विच गूँजन जयकारे 
एथे होवे मंगलाचार   -----------पहाड़ां वाली दा 

सबदे मन दी आस पुजावे 
कोई न दर तों ख़ाली जावे 
है रहमत दा भण्डार   ---------पहाड़ां वाली दा 

होके ध्यानू वांग दीवाना 
हस हस दे सिर नज़राना 
मन बन जा खिदमतगार ------पहाड़ां वाली दा 
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें