गुरुवार, 19 अक्टूबर 2017

सफर का मुसाफिर बनाया है

पैरों में सैंडल हो या जूते
पैरों के माप होते हैं
मिट्टी में मिट्टी बन जाते हैं
कोल्हू जब चलता है
चलते चलते घिस जाते हैं
जुर्म की इन्तहा तब होती है
जब वो पाँव बागी हो जाते हैं
जब पैरों की ज़ुम्बिश
कोई राग छेड़ देती है
सब कांप जाते हैं
मैंने पैरों को चलना सिखाया है
कंटीली वादियों में मिट्टी में
इस सफर का मुसाफिर बनाया है
@मीना गुलियानी 

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