सोमवार, 27 नवंबर 2017

क्या यही हूँ मैं

मैं अपनी जिंदगी की किताब
खोलता हूँ , पन्ना पलटता हूँ
घटनाएँ अनगिनत रंग में रंगती  हैं
बारिश की बूँद दूब पर मुस्काती है
मेरी तन्हाइयों की यादें गुनगुनाती हैं
तब मेरे आँसू पिघल जाते हैं और
मेरे अंतर के भय बिखर जाते हैं
मेरी अंगुलियाँ रेत पर थिरकती हैं
मैं अपनी तस्वीर को उकेरता हूँ
सुख की , दुःख की  परछाईयाँ
उभरती हैं , मेरे जीवन में तब
अनायास ही बसंत खिल उठता है
नए नए फूल उग आते हैं
अनन्त का झरना प्रवाहित होता है
जिससे मेरा तन मन रोमांचित होता है
मैं उसमे खो सा जाता हूँ
जिंदगी की किताब को देखता हूँ
पढ़ता हूँ , जीता हूँ, खुश होता हूँ
सोचता हूँ , क्या यही हूँ मैं ?
@मीना गुलियानी 

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