शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

बाजे ढोल मृदंग और चंग

आया है फागुन
पुलकित हुआ मन
हुलसा है तन
महका हर उपवन
पुराने पत्तों का क्षरण
नवपल्ल्वों का अवगुंठन
कोमल पत्तों पर
ओस कणों की छुअन
धरा का पुष्पों से
महका है आंगन
पहनी है धानी चूनर
लटकी मोती की झूमर
पहनी मोतियन माला
इठलाई बनके बाला
सूरज उतरा नीचे
छूने पाँव धरा के
चंदा ने दी बाहें पसार
चाँदनी गाए मल्हार
नाचे बन में मोर
प्रमुदित हुआ चकोर
ब्रज में छाया  उल्लास
कान्हा संग गोपियन का रास
आई ग्वालों की टोली
खेलें सब हिलमिल होली
उड़े अबीर गुलाल का रंग
बाजे ढोल मृदंग और चंग
@मीना गुलियानी




3 टिप्‍पणियां:

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  2. आदरणीय मीना जी -- फागुन मास के सर्वांग सौदर्य से भरी रचना बहुत ही सुंदर सार्थक शब्दों में बंधी हैं | होली से पहले फाग की आहटदेती रचना के लिए हार्दिक बधाई |

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