शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

खामोशी से सीपियाँ चुनते हैं

समुद्र के किनारे लहरों को गिनते हुए
बैठे हुए चुपचाप खामोश से हम तुम
तुमने जब आँखे खोली बजी एक धुन
जो एक लय में धड़कने लगती है

तुम्हारे होंठों पे हँसी आते आते
क्यों ठिठक जाती सिहर जाती है
एक तूफ़ान सी खामोशी फिर से
तुम्हारे हाथों में ही सिमट जाती है

तुम्हारी आँखों से परछाईयाँ उभरती हैं
अनगिनत रंगों के सपने निकलते हैं
एक  गुबार सा बरसने लगता है
हम तुम खामोशी से सीपियाँ चुनते हैं
@मीना गुलियानी 

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