बुधवार, 28 मार्च 2018

जिसे नहीं चाहती खोना

मैं तो हँसना ही जानूँ नहीं जानती हूँ मैं रोना
मुझको भाता है हँसना न भाता मुझको रोना

कितनी  पीड़ाएँ झेली पर तनिक क्षोभ नहीं है
हर चिंता क्रीड़ा करती मुझमें  भूल गई हूँ रोना

जीवन को ऐसा ढाला तन मन को बदला मैंने
सुख का सागर लहराए दुःख का उठा बिछौना

अब भरा है मेरा तन मन उत्साह और उमंग से
है प्रेम से अब आलोकित मेरे मन का हर कोना

मेरे जीवन में निराशा कैसे घेरेगी अब मुझको
अब धैर्य है मेरा साथी जिसे नहीं चाहती खोना
@मीना गुलियानी 

2 टिप्‍पणियां:

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  2. ब भरा है मेरा तन मन उत्साह और उमंग से
    है प्रेम से अब आलोकित मेरे मन का हर कोना--
    सचमुच प्रेम का असर किसी जादू से कम नहीं |बेहतरीन लेखन !!!!!!!!!

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