मंगलवार, 27 मार्च 2018

गगन की ओर बढ़ी जा रही है

प्रकृति की मनोरम छटा लुभा रही है
कहीं ऊँचे पर्वत तो कहीं खलिहान
कहीं गुलिस्तान तो  कहीं  रेगिस्तान
धरती की धानी चुनरी लहरा रही है

नदिया की कल कल ध्वनि आ रही है
एक मधुर संगीत की लय भा रही है
बहते झरने धरा से कुछ कह रहे हैं
चंद्रकिरणें पत्तों से छनके आ रही हैं

बादल भी उमड़ घुमड़कर छाने लगे हैं
गगन के तारे भी चमक दिखाने लगे हैं
धीमे से पुरवइया कुछ गुनगुना रही है
सुनके धरा भी जिसे सकुचा रही है

मन का मयूरा देखो कैसे इतरा रहा है
पपीहा भी पीहू पीहू की रट लगा रहा है
मधुर मिलन की नैनो में प्यास लिए
धरती गगन की ओर बढ़ी जा रही है
@मीना गुलियानी



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