शुक्रवार, 9 मार्च 2018

जब बेटी ससुराल पधारे

माता पिता के प्रेम का कैसे क़र्ज़ चुकायेंगे
बच्चों के सुख खातिर कितने ग़म उठायेंगे

कैसे भूलेंगे हम वो पल जब माँ थी लोरी गाती
खुद भूखी रहकर भी हमको भरपेट वो खिलाती

राजा बेटा रानी बिटिया कहकर गले लगाती
पापा से जब डाँट पड़ती वही आके हमें बचाती

बचपन के दिन हमें याद हैं करते थे हम मौज
पापा की पीठ के घोड़े पर चढ़ते थे हर रोज़

माँ की ममता का न कोई सांनी न ऐसा ज्ञाता
बच्चे की वो प्रथम गुरु है वो ही  भाग्यविधाता

पापा भी हैं सबको प्यारे हम हैं उनकी आँख के तारे
आँखे उनकी भी भर आती जब बेटी ससुराल पधारे
@मीना गुलियानी 

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