मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

गुनगुनाने की सदा आ रही है

एक दिन मैंने जिंदगी से पूछा
तुम इतनी तेज़ क्यों दौड़ रही हो
कुछ देर मेरे पास बैठो बात करो
तुम्हारा साथ मेरे मन को भाता है
तुमसे बात करने में मज़ा आता है
तुम मेरी हमराज़ हो, हमदर्द हो
 तुम्हारा हाथ थामकर भूले हुए
वो पल मुझे याद फिर आने लगे
फूलों को देखकर मुस्कुराने लगे
बरखा की फुहार पड़ते ही मेरा मन
ख़ुशी से भीगकर झूमने लगा
जिंदगी के इस पड़ाव पर हमें
वक्त मिला साथ साथ जीने का
वो पल संजीदगी भरे भी थे
सुकून भी देते थे कुछ हमारी वो
अल्हड़पन की यादें ताज़ा हो जाती थीं
पेड़ों के झुरमुट में एक दूसरे को
ढूंढते हुए फिर खो से जाते थे
भूले बिसरे गीत गुनगुनाते थे
रंग  बिरंगे चित्रों से हम अपनी
जिंदगी का कैनवास सजाते थे
अब सारे सुहाने सपने टूट गए हैं
हमसे अपने सब जैसे रूठ गए हैं
जिंदगी भी मुझसे दूर जा रही है
उसके गुनगुनाने की सदा आ रही है
@मीना गुलियानी



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