शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

मगर बात नहीं होती है

कैसे कहदूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है
मिलते वो रोज़ हैं पर बात  नहीं होती है

वो कभी भूले से भी पूछते जो हाल मेरा
दिन तो कट जाता है पर रात नहीं होती है

तुम कभी भूले से भी आइना देखा न करो
खुद पे मिट जाना बड़ी बात नहीं होती है

चुपके दुनिया से पहरों आँसू हम बहाते हैं
कब इन आँखों से बरसात नहीं होती है

गर वो सामने आ जाएँ तो पूछें हम कैसे
नज़रें मिलती हैं मगर बात नहीं होती है
@मीना गुलियानी







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