गुरुवार, 24 मई 2018

पहिया अनवरत चलता है

जब सुबह कलरव करते
पक्षियों को देखती हूँ
तो अपने मन में सोचती हूँ
कैसे वो घोंसला बनाते हैं
तिनका तिनका बीनकर लाते हैं
अपनी चोंच से फिर सजाते हैं
सुबह दाना चुगने निकलते हैं
तो शाम को घर लौटते हैं
उनके बच्चे अपनी चोंच खोलते हैं
माँ आती है उन्हें खिलाती है
आँधी तूफ़ान जब आते हैं
उनको भी तो डर लगता होगा
न जाने कितने घोंसले तो उस
तेज़ हवा के झोंकों से ही
टूटकर बिखर जाते हैं
मुझे यह देखकर दुःख होता है
उनका परिश्रम व्यर्थ जाता है
भगवान ने कैसा संसार रचा है
उत्पत्ति  विनाश का समन्वय है
जिंदगी कैसी  भी हो जीना पड़ता है
यह सफर तय करना पड़ता है
समय का पहिया अनवरत चलता है
@मीना गुलियानी
























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