बुधवार, 23 मई 2018

मैं पूरी करना चाहती हूँ

मैं एक मीठी नींद में खोना चाहती हूँ
उम्र के इस पड़ाव पर आकर भी
चाहती हूँ की कोई मेरा सिर सहलाये
माँ की तरह दिलासा दे, बहलाये
मेरा बचपन तो पीछे छूट गया
पर वो दिन अभी भी याद आते हैं
वो रूठना,मनाना ,हँसना ,खिलखिलाना
मैंने उम्र के हर पड़ाव पर संघर्ष झेला है
चाहती हूँ अब तो कुछ सुकून पा सकूँ
सूरज से उम्मीद की रश्मियों को लेकर
संभालकर रखा है जिसे अब बच्चों पर
उंढ़ेलना चाहती हूँ ताकि  उस उजाले को
 देखकर वो मुझे याद करें मुस्कुराएं
चाहती हूँ कि वो अपनी उम्मीदों के पंख
फैलाकर उन्मुक्त आकाश को छू लें
मुक्त स्वच्छन्द हवा में साँस लें
हर फ़िक्र दिल से निकालें, मुझे सौंप दें
मैं उनके हर संताप को हर लेना चाहती हूँ
बस यही ख़्वाहिश मैं पूरी करना चाहती हूँ
@मीना गुलियानी

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर भावों से सजी तमन्ना ।
    हां अब मै भी सूकुन चाहती हूं
    पर अपनों को खुश चाहती हूं
    वाह।

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  2. मन में भाव कभी माँ के प्रेम को तरसते कभी बच्चों के भविष्य सँवारते ...
    बहुत भावपूर्ण रचना है ...

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