मंगलवार, 10 जुलाई 2018

दिल पे इख़्तेयार

आओ कहीं छिप जाएँ खो जाएँ फिर इक बार
धीरे धीरे चुपके से फिर आएगा खुमार

मुझको अभी भी याद है जब तुमसे हम मिले
कितनी सुहानी शाम थी कैसे थे सिलसिले
कैसे भुलाएं मस्त पवन वो शाम की फुहार

थामे हमारे हाथों को जब साथ तुम चले
ऐसा लगा कि जल उठे बुझते हुए दिए
तबसे तुम्हारी याद में दिल मेरा बेकरार

बरखा की रुत सुहानी लो मदमाती आ गई
दिल पे मेरे वो बिजलियाँ आके गिरा गई
ऐसे में भला रहता है कब दिल पे इख़्तेयार
@मीना गुलियानी 

4 टिप्‍पणियां: