सोमवार, 9 जुलाई 2018

अचानक बुझती है

इक सेज़ पे मातम छाया है
इक सेज़ सजी फूलों वाली
इक चमन का मालिक हँसता है
इक बाग़ का रोता है माली

इक द्वार पे बजती शहनाई
इक द्वार से अर्थी जाती है
इक मांग तो लो सिन्दूर भरा
इक मांग उजड़ती जाती है

इक महफ़िल लो आबाद हुई
इक बज़्मे मुहब्बत लुटती है
देकर के उजाला औरों को
इक शमा अचानक बुझती है
@मीना गुलियानी 

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह उम्दा बेहतरीन, संसार इसी को कहते हैं. .
    कहीं चले बारात किसी की कहीं किसी की सांझ ढले ..

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  2. मार्मिक, डोली और अरथी साथ चली एक कटु सत्य

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  3. बहुत खूब लिखा
    इक द्वार पे बजती शहनाई
    इक द्वार से अर्थी जाती है
    इक मांग तो लो सिन्दूर भरा
    इक मांग उजड़ती जाती है

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  4. vDUNIYA MEIN ALG ALG CHEJEEN HOTI HAIN. VIVIDHTA HR JGH HOTI HAI. DO ALG ALG HALTON MEIN KUCH CHEJEEN SAJHI HOTI HAIN.JAISE EK HI BHGVAN SB MEIN SMAYA HUA HAI.HR KOI APNE APNE KRMON KA PHL BHOGTA HAI-ASHOK

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