रविवार, 22 जुलाई 2018

मैंने इससे सीखा

एक दिन इक नन्ही तितली
उड़ती हुई आई मेरी बगिया में
बैठी वो इक फूल पे पहले फिर
वो बारी बारी से लगी कूदने
कभी इस फूल पर कभी उस पर
उसके पँख बहुत सुन्दर थे
रंग भी उनका था चटकीला
सब फूलों का पराग वो लेकर
बैठी चुपचाप मेरी हथेली पर
फिर उड़ गई वो हाथ से मेरे
अपने सारे रंग वहीं छोड़कर
मेरा मन भी वहीं खो गया
कुछ सोच में मैं खो गया
विधाता ने क्या इसको रचा है
इंद्रधनुष सा रंग इसको दिया है
मुक्त गगन में वो उड़ती है
दिल में सबके उमंग भरती है
सारा दिन फूलों से पराग चुनती
मेहनत से कभी नहीं वो थकती
रेशम सा कोमल जिस्म है इसका
जीवन में रंग भरना मैंने इससे सीखा
@मीना गुलियानी 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर कोमल भाव लिये नाजुक सी रचना।
    सही कहा आपने तितली हमे सिखाती है लोभ न करो, हर फूल से थोड़ा थोड़ा लेती है और तृप्त हो जाती है।

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