रविवार, 12 अगस्त 2018

हम अपने गले लगाएं

आओ चिराग़ मिलकर जलाएँ
तिश्नगी दिल की हम मिटायें

जो लम्हे पीछे हमसे छूट गए
हम उन्हें याद करके मुस्कुराएं

टूटकर गिर गए जो शाखों से
उन्हीं फूलों को फिर से सजाएँ

जिंदगी की टीस हम भुलाएं
दर्द को हम अपने गले लगाएं 
@मीना गुलियानी 

2 टिप्‍पणियां:


  1. टूटकर गिर गए जो शाखों से
    उन्हीं फूलों को फिर से सजाएँ बहुत सुंदर मीना जी सुप्रभात

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  2. दर्द को गले लगाएं ... टूटे हुए फूलों को फिर सजाएं ...
    जीवन का सही अर्थ तो यही है ... बहुत सुन्दर रचना ...

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