सोमवार, 6 अगस्त 2018

आत्मबोध भी वो कराने लगा

आज मन में आस का पंछी
फिर से नीड़ बनाने लगा
नई उमंगों से नई तंरंगों से
सपने नए वो सजाने लगा
खिलती हुई नई कलियों को
वो चुनकर ख़्वाब बुनने लगा
फूलों से राहें सँवारने लगा
गीतों की माला पिरोने लगा
उम्मीदों के पँख बिखराने लगा
ख़ुशी के गीत गुनगुनाने लगा
इस डाली कभी उस डाली पर
वो फुदकने लगा बौराने लगा
जोश में झूमने लगा कूदने लगा
मस्ती में गाने लगा मुस्काने लगा
कानों में रस वो घोलने लगा
सबसे मीठा मीठा वो बोलने लगा
मन की भाषा को समझाने लगा
अनकही बातें भी वो बताने लगा
प्रेम का सबक वो सिखाने लगा
आत्मबोध भी वो कराने लगा
@मीना गुलियानी 

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