रविवार, 5 अगस्त 2018

चली पुरवाई जो आँगन में

चुपके चोरी से जगा के गया
ये कौन आया मेरे आँगन में
सपने भी सारे जाग उठे
महक उठे हैं फूल आँगन में

धीरे धीरे चुपके से आया है कोई
यादों में मेरी समाया है कोई
दिल मेरा तो झूम उठा
अँचरा उड़ा है आँगन मेँ

उसके ही ख्यालों में खोने लगी मैं
जागते ही जागते सोने लगी मैं
सोये सपने जाग उठे
चली पुरवाई जो आँगन में
@मीना गुलियानी 

1 टिप्पणी: