बुधवार, 28 नवंबर 2018

ग़म हम भूल जाएँ

चलो फिर से बचपन को लौटा लाएँ
अपनी हथेली में किरणों को समेटें
फूलों पे बैठी तितली को पकड़ें
ताज़ी हवा में चलो घूम आएँ
नन्ही नन्हीं कोंपलों को छुएँ
कोई गीत मस्ती में गुनगुनाएँ
 मुँह में हवा भरके गुब्बारे फुलाएँ
नर्म नर्म घास पर पैदल चलें हम
थोड़ी बहुत सेहत हम भी बनाएँ
बच्चों के साथ मस्ती करें हम
उनके ही जैसे बच्चे बन जाएँ
कभी रूठें पल में कभी मान जाएँ
खेलें कभी हँसें और खिलखिलाएँ
आसमाँ के तारे अँगुली पे गिनें
कभी सारी गिनती ही भूल जाएँ
कागज़ की इक नाव बनाकर
थोड़े से पानी में हम उसे तैरायें
बच्चों की किलकारी में खुश होकर
सारे जहाँ के ग़म हम भूल जाएँ
@मीना गुलियानी 

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