सोमवार, 3 दिसंबर 2018

अगवानी में प्रतीक्षारत हूँ

फूलों से कहो -
अपने पराग  से सजाएँ पालकी
वृक्षों से कहो -
अपनी हरियाली से सजाएँ पालकी
आकाश से कहो -
चाँद सितारों से सजाएँ पालकी
बादलों से कहो -
इंद्रधनुष से सजाए पालकी
इस पालकी पर मेरी प्रियतमा जब आए
द्वार पे बंधनवार बांधे
सुहागिनें मंगलगान गाएँ
उसकी आरती उतारें
फिर वो देहरी लांघकर
मेरे अंतर्मन में प्रवेश करे
मैं पलकें बिछाए हुए
उसकी अगवानी में प्रतीक्षारत हूँ
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें