रविवार, 2 दिसंबर 2018

हँसके सहती है

नारी है शमा की जैसी
जो सदैव ही है जलती
एक सांचे में है ढलती
जीवन प्रकाशित करती
कितनी यातनाएँ सहती
पर उफ़ न कभी करती
उसके दर्द को किसने जाना
किसने उसको पहचाना
वो रोज़ फ़ना होती है
मन ही मन में रोती है
देती है सबको खुशियाँ
हर ग़म हँसके सहती है
@मीना गुलियानी 

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