शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

उसे धिक्कारेगा

सोचती हूँ आज का मानव भी
कैसा  निर्मम ,निष्ठुर,कामपिपासु
 हो गया है उसकी अंतर्मन की दशा
उसे निम्नस्तर पर लिए जा रही है
 वह  जघन्य अपराध कर  बैठता है
उसकी आत्मा क्या मर चुकी है
केवल नारी देह की लोलुपता ही
उसे आकर्षित करती है उसमें उसे
माँ बहिन की छवि नज़र नहीं आती
नारी केवल भोग्या नहीं है
वो शक्ति स्वरूपा भी है
उसमे दया ,ममता,प्रेम भी है
वो अबला नहीं सबला भी है
पुरुष कामासक्त होकर असुर हो जाता है
उसे अपनी मनोवृति बदलनी होगी
नहीं तो केवल समाज ही नहीं
समूचा राष्ट्र इस जघन्य
कृत्य के लिए उसे धिक्कारेगा
@मीना गुलियानी

2 टिप्‍पणियां:

  1. उसे अपनी मनोवृति बदलनी होगी
    नही तो केवल समाज ही नही
    समूचा राष्ट्र इस जघन्य
    कृत्य के लिए उसे धिक्कारेगा।
    यथार्थ !
    बहुत ही सुंदर रचना।

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  2. एक जरूरी विषय पर लिखा आपने।

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