सोमवार, 14 जनवरी 2019

प्रवाह की खोज में

जब कभी मैं तन्हा होता हूँ
 मेरे मन में अचानक ही
सोया दर्द जाग उठता है
जो मन के भीतर ही
रिसकर बहने लगता है
धीरे धीरे वो नसों में
बहते बहते धड़कन में
समाने लगता है  फिर
वो शब्दों में ढलकर
निर्बाध गति से
प्रवाहित होने लगता है
भावना  का समुद्र
मन में लहराने लगता है
कभी कभी लगता है
मन के सेतुबंध टूट जायेंगे
कभी कभी भावना आँखों से
अश्रुधारा बन छलकने लगती है
मन महासागर बन जाता है
जो  अनन्त है और वह
भटकता है प्रवाह की खोज में
@मीना गुलियानी 

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