रविवार, 3 फ़रवरी 2019

आँख मलते मलते

आ गई फिर तेरी याद शाम ढलते ढलते
बुझने लगे दिल के चिराग़ जलते जलते

जाने कैसे ग़म घर में फिर घुसने लगे
तेज़ हवाओं के झोंकों के चलते चलते

तुझको बरसों से देखा नहीं इस तरफ मैंने
परछाईं मिटने लगी अश्कों के ढलते ढलते

जिंदगी के साज़ ने फिर से एक सुर सजाया
कसक जगी ख़्वाब मिटे आँख मलते मलते
@मीना गुलियानी 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आ गई फिर तेरी याद शाम ढलते ढलते
    बुझने लगे दिल के चिराग़ जलते जलते....बहुत ख़ूब सखी
    सादर

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  2. तुझको बरसों से देखा नहीं इस तरफ मैंने
    परछाईं मिटने लगी अश्कों के ढलते ढलते !!!!!!!!!!!
    बहुत ही भावपूर्ण शेर हैं प्रिय मीना जी | सस्नेह --

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  3. जिंदगी के साज़ ने फिर से एक सुर सजाया
    कसक जगी ख़्वाब मिटे आँख मलते मलते ...
    भावपूर्ण ... दिल में उतारते हैं सब्जी शेर ... बहुत लाजवाब ...

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