आजकल उन तक मेरी
बात पहुँचती ही नहीं है
पहले तो बिना कुछ कहे
वो सब जान जाते थे पर
अब आते जाते भी कम हैं
फोन पर नेटवर्क नहीं होता
कभी अधिक व्यस्त होते हैं
कैसे उनको बताऊँ उन बिन
इक पल जीना भी दुश्वार है
पवन के झोंकों से कहूँ या
बादलों को दूत बनाऊँ कैसे
अपना संदेश उन तक भेजूँ
मैं तो चंदा बिन चकोरी
जैसी बन चुकी हूँ तारे ही
प्रतीक्षा में गिनती रहती हूँ
जाने कब वो मेरी सुध लेंगे
@मीना गुलियानी
बात पहुँचती ही नहीं है
पहले तो बिना कुछ कहे
वो सब जान जाते थे पर
अब आते जाते भी कम हैं
फोन पर नेटवर्क नहीं होता
कभी अधिक व्यस्त होते हैं
कैसे उनको बताऊँ उन बिन
इक पल जीना भी दुश्वार है
पवन के झोंकों से कहूँ या
बादलों को दूत बनाऊँ कैसे
अपना संदेश उन तक भेजूँ
मैं तो चंदा बिन चकोरी
जैसी बन चुकी हूँ तारे ही
प्रतीक्षा में गिनती रहती हूँ
जाने कब वो मेरी सुध लेंगे
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें