मौसम अपना रंग बदलते रहते हैं
पर कुछ ज़ख़्म हमेशा हरे रहते हैं
बेवफा शीशे का दिल तोड़ते ही हैं
काँच चुभते हैं जख़्म होते रहते हैं
लोग अपने वादों से भी मुकरते हैं
दिल को घायल वो यूँ भी करते हैं
कटु वचनों से आहत वो करते हैं
ईश्वर के न्याय से भी न डरते हैं
कुछ मंज़र यादों के भी उभरते हैं
उनके भी ज़ख़्म हरे ही रहते हैं
वक्त गुज़रने से भी न भरते हैं
@मीना गुलियानी
पर कुछ ज़ख़्म हमेशा हरे रहते हैं
बेवफा शीशे का दिल तोड़ते ही हैं
काँच चुभते हैं जख़्म होते रहते हैं
लोग अपने वादों से भी मुकरते हैं
दिल को घायल वो यूँ भी करते हैं
कटु वचनों से आहत वो करते हैं
ईश्वर के न्याय से भी न डरते हैं
कुछ मंज़र यादों के भी उभरते हैं
उनके भी ज़ख़्म हरे ही रहते हैं
वक्त गुज़रने से भी न भरते हैं
@मीना गुलियानी
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