गुरुवार, 19 मार्च 2020

रे मन धीरज क्यों न धरे

रे मन धीरज क्यों न धरे
सम्वत दो हज़ार के ऊपर ऐसा जोग परे
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण चहुँ दिशा काल फिरे
अकाल मृत्यु जग माहि व्यापै परजा बहुत मरै
स्वर्ण फूल वन पृथ्वी फूले धर्म की बेल बढ़े
सहस्र वर्ष लगि  सतयुग व्यापे सुख  की दया फिरे
काल जाल से वही  बचेगा जो गुरु का ध्यान धरे
सूरदास यह हरि की लीला टारे नाहि टरे 

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