गुरुवार, 19 मार्च 2020

हर ग़म झेलतीं हैं

आँखें रहकर चुपचाप हर ग़म झेलतीं हैं
अश्कों को बहा  दिल का राज़ खोलती हैं
नादां है जो न समझे इनकी मूक भाषा
ये मासूम प्यार इनमे भरकर उड़ेलती हैं
@मीना गुलियानी 

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