गुरुवार, 21 मई 2015

गुरुदेव के भजन 367 (Gurudev Ke Bhajan 367)


तर्ज ----मन रे तू काहे न धीर धरे 

 मन रे तू काहे न भजन करे 
हीरा जन्म अमोलक पाके उसको क्यों बिसरे 

जीवन तो इक ढलती छाया क्यों ये भेद न जाने 
विषय भोग में डूबके अपना जीवन लगा बिताने 
काल से तू न डरे 

जो आया हे उसको है जाना जीवन है इक खेला 
जन्म मरण का इस दुनिया में लगा हुआ है मेला 
कोई न संग मरे 

छोड़ दे सारे पाप कर्म और जीवन सफल बनाले 
उसके ध्यान में खोकर बन्दे दुनिया को बिसरा दे 
काहे न ध्यान धरे 

मोहमाया में फंसके तूने हीरा जन्म गंवाया 
कोई न जग में अपना तेरा ये भी समझ न पाया 
काहे न जतन करे 


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