तर्ज ----मन रे तू काहे न धीर धरे
मन रे तू काहे न भजन करे
हीरा जन्म अमोलक पाके उसको क्यों बिसरे
जीवन तो इक ढलती छाया क्यों ये भेद न जाने
विषय भोग में डूबके अपना जीवन लगा बिताने
काल से तू न डरे
जो आया हे उसको है जाना जीवन है इक खेला
जन्म मरण का इस दुनिया में लगा हुआ है मेला
कोई न संग मरे
छोड़ दे सारे पाप कर्म और जीवन सफल बनाले
उसके ध्यान में खोकर बन्दे दुनिया को बिसरा दे
काहे न ध्यान धरे
मोहमाया में फंसके तूने हीरा जन्म गंवाया
कोई न जग में अपना तेरा ये भी समझ न पाया
काहे न जतन करे
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