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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

चैन से जीने न दिया



दो पल भी हमको चैन से जीने न दिया
पीना जो चाहा ज़हर तुमने पीने न दिया


                 रुसवाई का डर था हमको पर अब क्या शिकवा
                 तुमने जो पर्दा है गिराया लोगों से क्या पर्दा
                  तुमने जो गम दिया वो तो किसी ने न दिया


काश हमारा दिल न होता हमसे ही बेगाना
अच्छा हुआ जो टूटा दिल ये तब हमने जाना
 इक पल हँसना भी दिल की लगी ने न दिया


                 पास अगर तुम होते हमारे मुश्किल होती दूर
                 आज दूर है इतने कि तुमसे मिलने को मजबूर
                  मिलना भी चाहा अगर दिल ने ही शिकवा किया 

साथी साथ निभाना



साथी साथ निभाना, वादा किया तो तोड़ न जाना
मुझको कभी न भुलाना , साथी साथ निभाना


                         तू जो चलेगा साथ जो मेरे चलेंगी सारी राहें
                          राहों के शूल भी सारे अपना पंथ संवारें
                          चाहे पग में शूल चुभे तू उनसे न घबराना


तुझे साथ में देखूँ जब मै हर  टल जाये
 पल जब थम जाए डगर उसे मिल जाए
जीवन पथ पर  साथी पाँव अपना बढ़ाना


                        जीवन की मुस्कान तुम्ही से किस्मत की तू रेखा
                        तबसे भाग्य की रेखा चमकी जबसे तुमको देखा
                        राहों  की मुश्किल हो आसां मुझको न ठुकराना 

सुन दिल की सदा



वक्त ने किया जो तुमसे जुदा
आना पड़ेगा तुमको सुनके सदा
सुनले ओ साथी मेरे , मेरा फैसला
दिल मेरा तुझको हरदम देगा दुआ


              या तो लोटा दो दिल ये हमारा
              जो था हमारा बन गया तुम्हारा
              इतना भी मुझसे दूर न होना
              सुन भी न पाओ तुम मेरी सदा


ओ मेरे हमराही वादा ये करना
वादे से अपने अब न मुकरना
जिंदगी तो मैने  करदी तेरे नाम
करो तुम ये वादा कभी होंगे न जुदा

सदाओं का असर





आज हम अपनी सदाओं का असर देखेंगे 
तेरी नज़र देखेंगे ज़ख्मी जिगर देखेंगे 


दिल पे लगी चोट  तो वो पहले ही नाकाम हुआ 
कुछ तो बदनाम ही था और बदनाम हुआ 
तेरे एहसानो  का इस दिल पे असर देखेंगे 


अपनी नाकामियों का ज़िक्र भी अब क्या कीजे 
कुछ तो तड़प दी तुमने और तड़पने दीजे 
अपनी बर्बादी का अब जश्ने - अलम देखेंगे 


तेरी रेहमत का गर एक इशारा होता 
जो हुआ हाल हमारा ऐसा न हुआ होता 
आज तो चाके गिरेबां पे जुल्म देखेंगे 

बिखरे पन्ने -कविताओ का संग्रह




मेरी इन कविताओ को पढ़कर कोई मुझे कवयित्री समझ बैठे तो मै समझती हूँ यह उसकी भूल होगी।
अपनी पहली टूटी -फूटी कविता जब मै दसवी कक्षा में पढ़ती थी, तब लिखी थी।  तबसे यह क्रम
कैसे चलता रहा, मुझे कुछ याद नहीं आ रहा।   जीवन मेँ  अभावों का चोली -दामन  का साथ रहा।
कल्पना मेरी चिरसंगिनी रही है।   मेरी कविताओ में जहाँ एक ओर उमंगती हुई भावनाए तरंगित
मिलेगी वहाँ दूसरी ओर दामन से बाँधी हुई टीसों की परिध्वनि भी।

मन में जो आया लिख दिया, दोबारा उसके बारे में सोचा तक नहीं, लिख लिखकर कागज़ की पर्चियां
इकट्ठी करती थी।   मुझे पता भी न था कभी इन कागज़ की पर्चियों की कभी आवश्यकता भी पड़ेगी।
एक दिन मेरे बेटे ने वो सारी पर्चिया देखकर कहा  कि इनकी एक पुस्तक मै छपवाने जा रहा हूँ
आप तो दो शब्द लिख दो।   इस संग्रह में कुछ साल नई / पुरानी कविताओ का समावेश  है।   इनमे से
कोई भी कविता आपको भाव -विभोर कर सके तो मुझे अपार हर्ष होगा।

इसका श्रेय मै अपने बेटे को देना चाहती हूँ जिसकी बदौलत यह पुस्तक आपके समक्ष लाने का
उत्साह जुटा पाई।   मैने अपने बेटे से ही कम्प्यूटर पर ब्लॉग बनाकर लिखना सीखा।   यह सब उसके
प्रयास का ही परिणाम है जो आज आपके सामने है।

यह पुस्तक अपने सभी पाठकों को सप्रेम समर्पित करती हूँ।  आशा है आपको पसंद आयेगी।

Meri Kitaab 'Bikhare Panne' se kuch kavita ke ansh

ये चाँद सितारे कहते है

फुरकत का कुछ आलम ऐसा है , खुद को भी बेगाने लगते है
तन्हाई से घबरा जाते है , परछाई से खुद की डरते है

मंजिल की तमन्ना में भटके , काँटों से गुज़रते आये है
अब पाँव के छाले भी रिसते , हर गाम पे उठते गिरते है

रुसवाइयों से डरकर तो हमने , चेहरे पे नकाब भी पहने मगर
ये शहरे वफ़ा के लोग हमें , हर मोड़ पे घूरा करते है

ऐ काश कोई हमदम होता , जख्मों को ज़रा सहला देता
बेदर्द ये दुनिया वाले तो , हर जख्म कुरेदा करते है

बाहों का तुम्हारी ग़र मुझको , दम भर जो सहारा मिल जाये
वो मौत हंसी होगी कितनी , ये चाँद सितारे कहते है



जी चाहता है


निगाहें मिलाने को जी चाहता है , ज़रा मुस्कुराने को जी चाहता है

अभी तक तो रोकर ये उम्र गुजारी ,
अब हँसने हँसाने को जी चाहता है

तेरे चेहरे से निगाहें ये हटती नहीं ,
तुझपे मिट जाने को जी चाहता है

बस एक तुम हो और तन्हाई हो
 आलम भूल जाने को जी चाहता है

आ तुझको ज़रा और प्यार करलूं
तेरी चाहत पाने को जी चाहता है

न कभी भूल जाएँ एक दूजे को हम
कसम आज खाने को जी चाहता है

तुम्हीं हमसफ़र हो जिंदगी हो मेरी
जां निसार करने को जी चाहता है




सजन तुम बिन



कितनी सुहानी हे ये साँझ की बेला ,
किन्तु है सूनी सूनी सजन तुम बिन

                  मीठे मीठे कोयल के सुर भी
                   पड़ गए फीके सजन तुम बिन

सांसों की गति मंद पड़ गई
तीव्र न हुई सजन बिन

                    वर्षा में झींगुर के बोल
                    लगे न मीठे सजन तुम बिन

पायल और वीणा की झंकार
पड़ गई धीमी सजन तुम बिन

                    मन मयूर हुआ बेचैन
                    आये न चैन सजन तुम बिन

तुम ही तो मेरे खिवैया हो
कैसे लगू पार सजन तुम बिन

                     तुमसे ही नाता जोड़ा है पर
                      टूटे दिल के तार सजन तुम बिन



क्या दिल लगाके पाया


कोई पूछे कि दिल लगाके हमने क्या पाया है
कितना कुछ पाया और कितना कुछ गंवाया है

                   मिलाके उनसे नज़र दिल का चैन गंवा बैठे
                    खुद अपने और उनके हम होश गंवा बैठे
                    बड़ी मुश्किल से अब हमें होश आया है

कोई पूछे अगर रातों की नींद कैसे उडी
ये बात महफ़िल से कहने में उलझन बड़ी
अपनी और उनकी रुसवाई का ख़्याल आया है

                      दिल के दर्द की न जो दवा मिले तो क्या कीजे
                      खुद ही मर्ज जी  को लगा लिया क्या कीजे
                      अब तो अपनी हालत पे हमको तरस आया है




जिंदगी गुज़ारे चले गए



तेरे प्यार की कसम खाकर , जिंदगी गुज़ारे चले गए

तेरी तमन्नाओ का सहारा लेकर,
तेरी यादों का  किनारा   लेकर
भंवर में नैया उतारे चले गए

                        न जाने क्या खोया हमने क्या है पाया
                         दर्दे  दिल जगा दिल में तो ख्याल आया
                          हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए

तेरी महकी हुई जुल्फों की छाँव तले
तेरे मदभरे नयनों के जाम तले
हमअपनी  जिंदगी संवारे चले गए

                         दिल में अनब्याही कलियाँ चटकी है
                          तेरे दामन  से लिपटने को तरसी है
                           तेरे इंतज़ार में साँझ सकारे चले गए




सितमगर


आज तेरी बेरुखी ने फिर मुझे रुला दिया
दिल इतना रोया कि सारा जहाँ हिला दिया

इतने सितमगर तो न थे  तुम कभी
किसने तुम्हे मोम से पत्थर बना दिया

मै तो वो दिया हूँ जिसकी लौ बुझने को  है
क्यों आज तूने इस राह तक पहुंचा दिया

बेखबर थी अनजान थी इस  अंजाम से
बेखुदी ने किस मोड़  पर पहुंचा दिया

तन्हाई क्या है न जाना था कभी
क्यों ये तेरी याद ने बतला दिया




गाँव छोड़कर जाने वाले

 एक अपरिचित अनजाने से, कितना मुझको मोह हो गया
गाँव छोड़कर जाने वाले , उसको क्या तुम जान सकोगे ,

पल दो पल ही साथ हुआ था , किन्तु बन गया जीवन नाता
साथी बोलो उस नाते की , गहराई पहचान सकोगे

जिस तरुवर के नीचे हमने , अरमानो के फूल खिलाये
उस उजड़े तरुवर की पीड़ा , थोड़ी भी अनुमान सकोगे

थके पंथ के पंछी जैसा,  गिर ही जाऊँ गोद तुम्हारी
इसका क्या विश्वास कि , मेरी मजबूरी पहचान सकोगे




विरह का दर्द


पिया मोरे तुम बिन रह्यो न जाए
कासे कहूँ भेद मै अपना, जिया  मोरा उडा  जाए

दिन नही चैन रात नही निंदिया
तुम बिन मोहे न सुहावे बिंदिया
बिरह कलेजा खाए

जैसे चकोरी व्याकुल चंदा बिन
वैसी हूँ मै  सजना तुम बिन
तड़प सही न जाए

कब आओगे मोरे अंगना
कबसे खनक रहे है कंगना
तपन ये कौन बुझाए




पिया का आगमन


आज सखी जाने क्यों मन मोरा गाये
पिया घर आये मोरे पिया घर आये

खुशियों से भर गया मोरा अंगनवा
छुन छुन मोरा बाजे कंगनवा
प्रीत के गीत दिल झूम झूम गाये

सुध बुध बिसरी भई मै बावरिया
बरसो के बाद घर आये सजनवा

सेज सजाऊँगी मै दुल्हन  बनूँगी
कोई कसर भी न बाकी रखूंगी
आज पिया जो मुझे अंग से लगाये


फूल न मारो


शूल चुभा दो फूल न मारो
चाह नही जीने की यारो

किसी के दिल में प्यार नही
कोई किसी का यार नही
प्यार से अच्छी नफरत है
शूल चुभा दो फूल न मारो

घुट घुट कर हम जीते है
गम के आँसू पीते है
जीने से कुछ लाभ नही
शूल चुभा दो फूल न मारो

 रीत बुरी है दुनिया की
प्रीत बुरी है दुनिया की
देखी वफ़ा इस दुनिया की
शूल चुभा दो फूल न मारो



दिन गुज़र न जाए कहीं

 आज देखा है तुझे देर के बाद
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं

तमन्ना इस दिल की तू आये यहाँ
और फिर लौटके न जाए कहीं

आरजू दिल की सारी पूरी हो
मेरी हस्ती बिखर न जाए कहीं

आज जी भर के मुझे रोने दे
कहीं दरिया उतर न जाए कहीं

तुम यूँ ही बैठे रो मेरे आस पास
डर है तू दिल से उतर न जाए कहीं




बेबसी का दर्द


बेबसी का हद से जब  गुज़र जाना
फिर बताये कोई कैसे जिया जाना

जिंदगी का दुल्हन बनके संवर जाना
वक्त से कहदो दो घड़ी ज़रा ठहर जाना

दो घड़ी तो  रुको फिर चले जाना
दिल की धड़कन ज़रा रुक जाना

हम बने  खुद ही अपने दुश्मन जब जाना
तुमपे न आने देंगे इल्ज़ाम बनायेगे बहाना




वादा निभाना


वादा करना और न आना, कैसे बनेगा फिर ये फ़साना
तूने बनाया झूठा बहाना , सोचो कैसे मैने ये जाना

सच तो सच ही होता है यारो
कुछ तो सीखो वादा निभाना

झूठ कहूँ तो कैसे कहूँ मै
तेरी वफ़ा पे मेरा मिट जाना

तेरी ज़फ़ाएं देखेंगे हम भी
मेरी वफ़ाएं देखे ये ज़माना



चले आइये



दिल की महफ़िल सजी है चले आइये
आपकी बस कमी है चले आइये

हमने सोचा न था होगा ऐसा कभी
जो मिले भी तो बिछुड़ेगे न हम कभी
तोहमते लग चुकी है चले आइये

दिल्ल्गी से  जान  तो जाने लगी
आपको पर ये झूठी कहानी लगी
अब तो हद हो चुकी है चले आइये

बेजुबानी पे किसी को सताना नही
रूठ जाए अगर तुम मनाना नही
ये सितम हम पे अब क्यों चले आइये

तेरे आने से रुत ये निखर जायेगी
जिंदगी मेरी कुछ तो संवर जायेगी
बेकसी बढ़ चुकी है चले आइये




तराना प्यार का

छेड़ मेरे साथी तराना कोई प्यार का
नगमा जवां हो गया सुनके नशा हो गया

रात ढलने लगी, शमा पिघलने लगी
जिंदगी की सहर , फिर यूं मचलने लगी
जाने क्या है जादू सा ,मौसमे बहार का

आंसू लगे मुस्कुराने , होठ लगे गुनगुनाने
महकने लगी है फ़िज़ाएं ,
फूल लगे मुस्काने
तेरा जलवा ऐसा है ,नशा जो खुमार का


दूर चले


चलो आज हम दूर चलें
मुक्त गगन में उड़ चले
पंछी बन विचरण करें
चलो आज हम दूर चलें

पथ में सुमन खिलाये
शूलों को दूर भगाएं
जग के इन स्वार्थ भरे
नातों को ठुकराये
सपनो की दुनिया बसाये
चलो आज हम दूर चलें

न हो कही  पर दुःख का निशां
हो सुख से भरपूर ये जहाँ
वादियों में फूल खिलाएं
जीवन को स्वर्ग बनाएं
मंजिल पे कदम बढ़ाएं
चलो आज हम दूर चलें




प्रीत की मनुहार

माना ये जीत तुम्हारी है , पर मेरी भी तो हार नहीं

              मै तो  अपनी आकुलता से
              प्रीत निभाया करता हूँ
              अपनी आशा के दीपो को
               मै रोज़ जलाया करता हूँ

अब चाहे मृत्यु आ जाए , ये जीवन मुझको भार नही

              लहरें सागर तट  पर तो  
              अस्तित्व मिटाया करती है
     
               शलभों की टोली दीपक पर
               प्राणो को लुटाया करती है

हो अधरों  मुस्कान तेरे, मुझको ये आंसू भार नही

               ये बंधन हे स्वीकार मुझे
                इसमें धरती आकाश बंधे
                मुझको सुख मिलता इसमें
                इसमें प्राणो के पाश बंधे

पथ की विपदायें प्यारी है ,मंजिल से मुझको प्यार नही




तेरा निखरा रूप


तेरा निखरा रूप जैसे , खिलता हुआ चमन
जग हँस रहा जैसे , हँस रहा जैसे गगन

कलियों  में सुरभि लिए, तुम यूं ही खिलो
होठो पर मुस्कान लिए, तुम मुझसे मिलो
लगता हे आज जगे , मेरे सोये हुए सपन
जग हँस रहा जैसे , हँस रहा जैसे गगन

सागर अठखेलिया है  करता , लहरो को संग लेकर
तुम भोली चितवन से देखो , आँखों में प्यार भरकर
जीवन का सुख यही है , बोले मेरा अन्तर्मन
जग हँस रहा जैसे, हँस रहा जैसे गगन




दोराहा


बात इतनी बढ़ी कि उलझन में पड़  गए
न पता था ऐसा भी कभी दोराहा आएगा

हम तो बेखुदी में जहाँ को भूल बैठे थे
क्या पता था जमाना ये कहर ढायेगा

जिस आशियाने को फूंक दिया
इस जमाने की चिलमन ने

कबसे हम बैठे इसी फ़िराक  में है
कभी अपना मुक़ददर जगमगाएगा

हम अपनी बर्बादी का सितम देख चुके है
देखते है ज़माना और क्या गुल खिलायेगा




प्यासी अखियाँ



अखियाँ  तुम बिन प्यासी
रहती निशदिन उदासी
दो पल कल भी न पाती

सारा दिन मग जोह के
हारकर ये थक जाती
तब मन ही मन में
हो अधीर वो अकुलाती

कभी जब कागा टेर सुनाता
वो हर्षित हो जाती
पिया मिलन की आस लिए
वो अश्रुपूरित हो जाती

कभी सुख में कभी दुःख में
कभी छाँव में कभी धूप  में
जब भी वो तुम्हे न पाती
 बड़ी व्याकुल हो जाती

तुमसे मिलते ही हर्षातिरेक से
फिर जल से वो भर जाती
मन के सारे भेद चुपके से
वो अखियाँ ही कह  जाती




एक मुकाम हुए हम तुम


प्यार के सफर में, एक मुकाम हुए हम तुम
याद जो रहेगा वो, पैगाम हुए हम तुम

सपनो की भीड़ में जिंदगी वीरान है
प्रीत में ढली वो मुस्कान हुए हम तुम

धड़कनो के पास तेरी यादो का बसेरा है
फासले  सब टूटे एक पहचान हुए हम तुम

जिंदगी और मौत पल दो पल का सवेरा है
जो कभी न ढ़ले ऐसी शाम हुए हम तुम

दर्द का सफर एक ख्याल बनकर रह गया
खुशियो का गाँव मेहमान हुए हम तुम



तुम पिघले भी तो क्या पिघले


तुम  पिघले  भी  तो क्या पिघले , मैने तो पाषाण पिघलते देखे है
अपनी आहो पर नाज़ मुझे , मैने तो भगवान सिसकते  है

 जो कहकर मुझसे चला गया , हूँ पत्थरदिल मत याद करो
उस पत्थरदिल में अनायास , मैने तो अरमान उमड़ते देखे है

जिन आँखों की अमराई में , खो गया विहग मेरे मन का
उन नील नयन की कोरो में , मैने सैलाब उफनते देखे है

उलझन , कसकन झंझा  से ,जो  विरहिणी अवतरित हो
उसकी विरह व्यथा में , मैने तो तूफ़ान मचलते देखे है

जो  लिए उदासी के क्षण हो , पायल की झम झम में अपनी
  उसकी वीरानी संध्या में, मैने तो उद्गार पनपते देखे है



सपने खो गए


सारे सपने कहीं खो गए , जाने हम क्या से क्या हो गए

प्यार हमने किया , प्यार तुमने किया
जाने फिर दूर क्यों हो गए

वादा हमने  किया , वादा तुमने किया
क्यों फासले दरम्यां हो गए

चलते तुम भी  गए ,चलते हम भी गए
रास्ते क्यों जुदा हो गए

दूरियां तब न थी , दूरियां अब जो है
दिल ये क्यों बदगुमां  हो गए



प्रेम नगरिया


है ये प्रेम की ऊँची नगरिया , साथी धीरे धीरे चलना
बड़ी बांकी है इसकी डगरिया ,  साथी संभलकर पग धरना

सामने है नदी का किनारा , कल कल बहती नदी की  धारा
साथी हाथोँ को थाम ,और   थाम पतवार
साथी बाहो का दे दे सहारा
कहीं छूट न जाए डगरिया--------साथी-----------------------

लोच खाए न तेरी  कमरिया , देख सरके न तेरी गगरिया
 पड़ जाये न बल ,ज़रा धीरे से चल
कर निश्चय तू  अटल
कोई लागे न पग में कंकरिया -----साथी ---------------------



तेरी बेरुखी


दिल लगाके हमने  जाना , दिल्ल्गी क्या चीज़ है
इश्क कहते है किसे और आशिकी क्या चीज़ है


पहले दिल  को आप ही अपना समझ बैठे थे क्यों
फिर न जाने किस वजह से बिसराया था क्यों
टूटा दिल जब  जाना हमने बेखुदी क्या चीज़ है

हुई नादानी कुछ थी हमसे ,तुमसे भी तो कुछ हुई
हुए जुदा जो खाके ठोकर बेईमानी कुछ हुई
अब हुआ  मालूम हमको बेरुखी  क्या चीज़ है



प्रीत की पुकार

प्रीत मन की करे पुकार

सपनो के मीत  मेरे
गाऊं कैसे गीत तेरे
टूटे है वीणा के तार
प्रीत मन की करे पुकार

विरह व्यथा में प्राण जरे
तू भी न ध्यान धरे
नैया डोले है मंझधार
कैसे उतरूँगी उस पार

अंबर पे हँसते है तारे
आजा सजना हमारे
बरसते है नैन  हमारे
काहे दीनी बिरह की मार



अब क्या आओगे साजन


जीवन आशा की लताये
जब हिलोर ले उठती थी
मदमस्त लहर की तरंगे
जब विभोर  उठती थी

                 तब क्यों रूठे तुम साजन
                 अब क्या आओगे  साजन

तब सब सुमन  विकसित थे
उनमे मकरंद था उड़ता
मन की वीणा में निशदिन
था  मधुर राग इक बजता

                 टूटे तारों से अब क्या
                 मै  गीत सुनाऊँ साजन

थक गए है व्याकुल  नैना
अब तक भी तुम  न आये
जाने कब जीवन का दीपक
कब जले और बुझ जाए

                   हुआ क्षीण आज तो  यौवन
                   अब क्या आओगे साजन






मनवा है बेचैन

चैन मुझे मिलता नही , मनवा है बेचैन
दिलबर दीद को , हरदम तरसे नैन

प्रीतम  कब तुम आओगे  और न सताओगे
हर पल पंथ निहारूँ मै , होकर मै बेचैन

पल छिन राह निहारूँ मै इक पल न बिसारू मै
पलक न झपके मेरी , निरखत हूँ दिन  रैन

कैसे तोड़ू प्रीत को , झूठी जग  की रीत को
बंधन तोड़ न  पाऊँ मै, तड़पत हूँ दिन रैन




क्या ढूढ़ रहे है


कोई पूछे हमसे कि हम क्या ढूढ़ रहे है
दिल के जख्मो की दवा ढूंढ रहे है

किसको सुनाएंगे हम दिल की दास्ता
इक हम है इक  वो है तो क्या ढूॅढ़ रहे है


 तेरे जाने का सबब पूछेंगे सब कैसे बतायेगे
इतनी आसां नही है मर्ज जिसकी दवा ढूढ़ रहे है

तुझपे हर्फ़ न आने देंगे , जान अपनी गंवा देंगे
मिटने की हसरत में, जीने की सज़ा ढूढ़ रहे है



मुस्कुराते रहो


मुस्कुराते रहो  गुनगुनाते रहो
जिंदगी गीत है इसको गाते रहो

सोचो साथ तेरे और क्या  जाएगा
ख़ुशी का हर लम्हा न भुला पायेगा
मुस्कुराके गमो को भुलाते रहो

कारवां वक्त का यूँ गुज़र जाएगा
मुस्काओगे  बचपन फिर लौट आएगा
मुस्कुराहटों में हर पल बिताते रहो



 ओ मेरे  हमनवाज़



जब अँधियारा छा जाये , राह में मुश्किल पेश आये
तुम छोड़ न जाना साथ, ओ मेरे हमनवाज़

होती चांदनी मगरूर , अंधेरो से रहती है दूर
पर मै तेरा साया बन ,चलूंगी तेरे साथ ज़रूर

दो घड़ी साथ जो चल पाएं ,ज़माने की खुशियाँ पायें
तेरी सांसो की खुशबु से, सारे ग़म पिघल जाएं

प्यार का बंधन न टूटे , सांसो का रिश्ता न टूटे
थाम ले डोरी हाथों में, साथ धड़कन का न छूटे

प्यार का जादू छ जाए, खुमारी अब ये मन भाये
नशा न उतरे जीवन भर, उम्र मेरी तुझे लग जाए




दो घड़ी पास बैठो


दो घड़ी तुम पास बैठो
बस ज़रा मै प्यार करलूँ
तेरे इन नाजुक लबों के
रस ज़रा स्वीकार करलूं

हाय खिलता रूप तेरा
हो रहा जैसे सवेरा
फूल सी मुस्कान दे दो
जिसपे मै अधिकार करलूं

इस तरह आना तुम्हारा
रूठकर जाना तुम्हारा
भूल मेरी है यदि तो
मै तेरी मनुहार करलूं

जब ठिकाना है न पल का
फिर भरोसा केसा कल का
आओ जी भर कर तुम्हारा
आज मै सत्कार करलूं




तुझको देकर दुआएं


तुझको देकर दिल की दुआएं हम तो हुए परेशान
प्यार लुटाके तुम पर अपना,मुफ्त हुए बदनाम

              सदियों पहले ये न हुआ था
              नींद थी अपनी दिल अपना था
ले गए जबसे तुम दिल मेरा जीना हुआ नाकाम

               प्यार के वादे निकले झूठे
               सपने जो देखे पल में टूटे
अरमा बिखर के रह गए मेरे रास्ते में हो गई शाम

              पहला पहला प्यार था अपना
              मालूम क्या था है इक सपना
टूटा जो दिल आँखों में आंसू आएं  सुबो - शाम

             काश न तुमसे प्यार न होता
             गम न मिलता दिल न खोता
झूठी तसल्ली देकर तुमने जीना किया है हराम





मंजिल की ओर


मंजिल की ओर बढ़े कदम , पर मंजिल पाना मुश्किल है
कुछ जाल रकीबों ने ऐसे बुने , जिन्हे तोड़ पाना मुश्किल है

तूफां के थपेड़ो में पड़कर , साहिल तक आना मुश्किल है
 मौजो की ऊंचाई के आगे , पतवार चलाना मुश्किल है

दीदार तो उनका क्या होगा , कुछ सोच भी पाना मुश्किल है
जख्मो को तो हमने झेल लिया, पर होश में आना मुश्किल है

हाले  बयां करते तो  क्या करते , कुछ लिख पाना मुश्किल है
अपने हरफों को  ही अब तो , समझ पाना मुश्किल है




जुदाई का दर्द

तुमसे दूर हुए तो जाना जुदाई क्या होती है
यह मौत से भी बड़ी सज़ा होती है

 दिल को रोना पड़ता  है
 हर सुख खोना पड़ता है
सुकून जो दिल का खो जाए अजब हालत होती है

धड़कने थम जाती है
नब्ज़ रुक सी जाती है
आँखे हर पल रहती है नम रुसवाई होती है

लोग तड़पने का मज़ा लेते है
दुखी का दिल और दुख देते है
कसक दिल की फिर भी न ये कम होती है

आँखों में गुज़रे पल तैरते है
कानो में मीठे बोल गूंजते है
हर पल सताने लगता ये  गम  दुनिया सोती है



दिल की बाते


दिल की बाते दिल ही जाने
क्या है तमन्ना इस दिल की
या तुम खुद ही आकर पूछो
ख्वाहिश क्या मेरे मन की

क्या है बताओ दिल में तुम्हारे
हम है या कोई और वहाँ है
कोण है आखिर मेहमां तेरा
जो तेरे इस दिल में बसा है
थोड़ा सा मुझको भी बतादो
जिससे तसल्ली हो मन की

मेरे दिल  में तुम रहते हो
सच कहती हूँ झांक के देखो
नज़रे भी देंगी ये गवाही
जो बातो पर यकीं न हो तो
दिल में है तस्वीर तुम्हारी
जो बाते करती है मन की




उनका ख्याल

उनके ख्याल आये तो आते चले गए
कुछ राज़ थे जो दिल में छुपाते चले गए

तेरे दीद की हसरत लिए बैठे  कभी से
तुम आये तो हम सबको भुलाते चले गए

तेरे आने से  रोशन हुआ मेरा सारा जहाँ
किश्ती  को हम किनारे पे लाते चले गए

दिल डूब रहा था कितने गम के भंवर में
मिला सुकून जो तुम साथ हमारे चले गए



परदेसी प्रियतम


तुम चले गए परदेस , लगाके दिल को मेरे  ठेस
ओ प्रीतम प्यारे , अब जिऊँ मै किसके सहारे

जो यूं ही मुझे भुलाना था
तो यूं नजदीक न आना था
दिल मेरा गमो से चूर
हुआ मजबूर है झूठे सहारे

तूने क्यों मुझको बिसराया
तू ही तो था मेरा साया
अपनों से हुई मै दूर
क्या मेरा कसूर क्यों टूटे तारे

जो मुझको यूं ही गिराना था
तो पलकों पर न बिठाना था
अब गया तू जबसे रूठ
हर सपना झूठ क्या दोष हमारे




मिलने की हसरत


तुमसे मिलने की हसरत लिए जा रहे है हम
ये गुनाह है माना पर किये जा रहे है हम

तूने पर्दे में  अपने को छुपाया भी मगर
 झलक पाने की ख्वाहिश किये जा रहे है हम

तेरे रुखसार को देखने  की ख्वाहिश तो बहुत है
कबसे तेरी दीद की तमन्ना किये जा रहे है हम

तुम मरहम दोगे  ये तो मुझे एहसास था
अब चाक गिरेबां को सीए जा रहे है हम



तेरा तसव्वुर


कल चौहदवीं की रात को , देखा तेरा निखरा तसव्वुर
दिल तो था नादा बहुत, देखा तुझे तो चमका मुक़ददर

समझाया था मैने बहुत, लेकिन वो था कितना  नासमझ
दुनिया की रस्मो से बिल्कुल, अंजान वो था बेखबर

तेरी जुल्फों से खेलती ये अंगुलियाँ भी थी बेनूर बेअसर
तेरे रुखसार पे दिल फ़िदा था ,मगरूर  होगा क्या थी खबर

आसां तो बहुत था मंजिल पा लेना, बनते जो मेरे  हमसफ़र
मगर तुम्हे भुलाना नामुमकिन है, करूँ क्या ऐ मेरे  रेहबर



चुनरिया



पिया तेरे रंग में रंगी चुनरिया
तेरे ही कारण भी मै बावरिया

                  तन मन खोया नही होश मुझे कोई
                  नींद तूने लूटी सारी रैन नही सोई
                   सूनी सूनी डसती रही रे  सेजरिया

तेरी बाहो में ही सुकून मै पाऊँ
तेरे संग बिन पंख ही उड़ जाऊँ
तेरे बिन भाये न कोई डगरिया

                तू  मेरा मोहन है मै हूँ  तेरी  राधा
                जन्म भर न साथ छूटे करो ये वादा
                प्रेम में तेरे भूली अपनी खबरिया

गया जबसे दूर तूने मुझको भुलाया
एक खत से भी संदेश न भिजवाया
बता तूने काहे न लीनी मोरी  खबरिया



पदचाप



ये तुम्हारी पदचाप मुझे सुनाई दे रही है
लगता है जैसे कोई आवाज मुझे दे रही है

दूर की अमराइयों में घने जंगलो से
लगता है बांसुरी बजती सुनाई दे रही है

खामोशी के दामन से घटाओ  के आँचल से
इक खुशबु सी उड़ती दिखाई दे रही है

बहता  कोई झरना जैसे टकराये लहर साहिल से
ऐसी इक मौज मन में उमड़ती दिखाई दे रही है

तुमसे मै दूर नही जैसे कलियों के  पीछे झुरमुट से
तेरे दिल की धड़कन की आवाज़ सुनाई दे रही है

जुल्फों की घनी छाँव जैसे ,मेहँदी लगे पाँव जैसे
पायल की छमछम सी बजती सुनाई दे रही है

हर  आहट पे खटका हो जैसे बदन में सिहरन  जैसे
तेरी हर अदा मुझे बंद आँखों से भी दिखाई दे रही है



तुम ही तुम हो

जबसेतुम्हे देखा है आँखों में तुम्ही तुम हो
साँसों में रम गए हो , दिल में छिपे तुम हो

           दिल को मिला साथ जो  तुम्हारा
            चमका मेरी किस्मत का सितारा
प्यार तेरा पाया है राहों  तुम्ही तुम हो

             किश्ती ने पाया है किनारा
              मिला तेरी बाहो का सहारा
नगमे दिल गाने लगा साजों में तुम्ही  तुम हो

              छू ले गर आँचल तू हमारा
              थरथरा सा जाए ये शरारा
पलकें जो बंद करूँ सपनों में तुम ही तुम हो




तेरी याद


आज फिर दिल में इक उमंग सी उठ आई है
न जाने  क्यों फिर से तेरी याद चली आई है

कभी कभी तो  ये बहुत ही सताती है
कभी कभी तो ये बहुत ही रुलाती है
कभी तेरी बात पे हंसी मुझे आई है
न जाने क्यों तेरी हर अदा मुझे भाई है

तेरे शानो पे सर रखके मेरा सोना
तेरा मुझपे झुकना ख्यालो में खोना
 हाथों का उठना गेसू का बिखर जाना
तेरा यूं तकना मेरा शर्मा  जाना
प्रीत  ने कली दिल की महकाई है



पैगामे मुहब्बत

मैने तो तेरा हाथ आज थाम लिया है
सारी दुनिया ने मुझे इल्जाम दिया है
इस दिल को मैने अब तेरे नाम किया है
तूने मुहब्बत का ही पैगाम दिया है

रुसवाई  का डर है मुझे ऐ मेरे हमसफ़र
तेरी आाँखो से मैने जाम पिया है

तेरा ही  तसव्वुर देखती हूँ हर सू
दिल ने तो मुफ्त में बदनाम  किया है

हर दिल को तेरी आरजू तेरी तमन्ना है
हर इक ने तेरा नाम सुबो शाम लिया है

तू मेरा राहते जा मेरा लखते जिगर है
तुझसे ही इब्तदा और अंजाम किया है


दीवाना  दिल


छेड़ो न मुझे ऐसे दिल हो गया दीवाना
समझे मुझे ये दुनिया तेरे प्यार में बेगाना

सबने मुझे  नफरत दी , इक तूने मुहब्बत दी
देखो कभी दिल मेरा अब तू न कभी दुखाना

मैने तुझे पाया है तू मेरा  ही तो   साया है
वादा किया है तूने देखो न भूल जाना

तेरा मुझपे ये ऐहसा है तू कोई फ़रिश्ता है
सबसे मुझे प्यारा है अपना तुझी को माना

मै तेरे सहारे हूँ दुनिया का  भरोसा क्या
देखो तुम  दुनिया की बातो में नही आना




ऐ मेरे हमसफ़र


 ऐ मेरे हमसफ़र लम्बा है बहुत जिंदगी का सफर
थोड़ा  कट जाए इसलिए थोड़ी दूर मेरे साथ चलो

ये माना जिंदगी का  सफर भी कठिन है
ये माना तुम्हारा साथ चलना भी कठिन है
कुछ  लम्हे तो हँसते हुए गुज़र जायें
इसलिए कुछ दूर मेरे साथ चलो

ये माना तेरे मेरे जज़्बात अलग है
ये माना तेरे मेरे हालात अलग है
अब दुनिया ये हम पर न हँसे
इसलिए थोड़ी दूर  साथ चलो

आएंगे मोड़ कई जब चाहे रुक जाना
आएंगे मुकाम कई जब चाहे रुक जाना
जाने - पहचाने लोग निकल जायें
इसलिए थोड़ी दूर मेरे साथ चलो



पिया के आने का  संदेश

नाचे मोरा मन जी में उठत हिलोर
आज घर आएंगे पिया चितचोर

आया संदेशा तो मन मोरा झूमे
 पुरवाई लहरा के तन मोरा चूमे
उडी जाऊं जैसे पतंग संग डोर

 कितने बरस बाद आयेगे सजना
मेहँदी रचाके मै पहनूंगी कंगना
लाज आये पकड़े वो चुनरी का कोर

मै हूँ पिया की वो मेरे रहेंगे
तन मन इक रंग में हम रंगेंगे
छोड़ू न साथ चाहे रैन हो या भोर





मन की हालत


मन तो है इक पागल इसकी बाते कोई क्या जाने
हर पल कैद में रहना चाहे और कुछ भी न जाने

कितना तड़पाता है ये मुझको क्या तुमने कभी जाना है
तेरे साथ गुज़ारा हर पल कितना लगे सुहाना है
लेकिन लम्बी जुदाई की राते गुज़री कैसे ये क्या जाने

तू तो मेरे साथ है फिर भी जाने क्यों ये मन उदास है
शायद कल बिछुड़ने का भी इसको थोड़ा सा आभास है
तेरे  बिना अब जीना कैसे और मरना ये क्या जाने

मिल जाओ जो तुम मुझको आँखों में छुपा लूँ
इक पल भी मै करूँ न ओझल सीने  में बसा लूँ
लेकिन कब आएगा वो पल ये हम तुम क्या जाने



पिया का संदेश


सुन आलि  झूमे डाली कोयल गीत सुनाने लगी
छाये बदरा फैला कजरा चुनरी मोरी लहराने लगी

मिली आने की उनकी पतिया
सुनके धड़क गई मोरी छतिया
पुरवाई बन शहनाई कोई मधुर गीत गाने लगी

मेरी जुल्फे जो शानो पे छाई
लट उलझे लूँ जब अंगड़ाई
प्यासा भंवरा मोरा सजना देख उसे मै शर्माने लगी

ऐसा बलमा अनाड़ी  मेरा आलि
जिसने मोरी कलाई मोड़ डाली
भीगी अंगिया भीगी साड़ी कली फूल बन मुस्काने लगी




जिंदगी गुज़ारे चले गए

तेरे प्यार की कसम खाकर
जिंदगी गुज़ारे चले गए

                     तेरी तमन्नाओ का सहारा लेकर
                      तेरी यादो का किनारा लेकर
                      भंवर में नैया उतारे चले गए

न जाने क्या खोया हमने क्या पाया
दर्दे दिल जगा दिल में तो ख़्याल आया
कि हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए

                     तेरी महकी हुई जुल्फों की छाँव तले
                     तेरे मदभरे नयनो के जाम तले
                     हम अपनी जिंदगी को संवारे चले गए

दिल में अनब्याही कलिया चटकी है
तेरे दामन से लिपटने को तरसी है
तेरे इंतज़ार में साँझ सकारे चले गए



क्या दिल लगाके पाया

कोई पूछे कि क्या दिल लगाके हमने पाया है
कितना कुछ पाया और कितना कुछ गवाया है

 उनसे नज़र हम दिल का चैन गंवा बैठे
खुद अपने और उनके हम होश गंवा बैठे
बड़ी मुश्किल से अब हमे होश आया है

कोई पूछे अगर रातो की नींद कैसे उडी
ये बात महफ़िल में कहने से उलझन बड़ी
अपनी और उनकी रुसवाई का ख्याल अाया है

दिल के दर्द की न जो दवा मिले तो क्या कीजे
खुद ही मर्ज जी को लगा लिया शिकवा क्या कीजे
अब तो अपनी हालत पे हमको तरस आया है




कैसे करूँ बयां

कैसे करूँ बयां गमे जिंदगी को आज

फट गए है पाँव मंजिल की लाश में चलते चलते
कोई तो आता मरहम लगाने को हमदम आज

तुम पास होते तो बात कुछ और ही होती
न आँखे रोटी न दिल मेरा टूटता आज

लेकर चिराग भटकता हूँ मज़ारों के आस पास
कोई तो करे रौशनी मेरी जिंदगी में आज

कब तक शर गुजरेगी यूं ही तड़प  तड़पकर
कोई हमदर्द तो गुज़रे मेरी गली से आज




सजन तुम  बिन


कितनी सुहानी है ये साँझ की बेला
किन्तु है सूनी सूनी सजन तुम बिन

मीठे मीठे कोयल के सुर
 हो  गए फीके सजन तुम बिन

सासो की गति मंद पड़ गई
तीव्र न हुई सजन तुम बिन

वर्षा में झींगुर के बोल
 लगे न मीठे सजन तुम बिन

पायल और वीणा की झंकार
पद गई धीमी सजन तुम बिन

मन मयूर हुआ बेचैन
न आये चैन सजन तुम बिन

तुम ही तो मेरे खिवैया हो
कैसे लगू पार सजन तुम बिन

तुमसे ही नाता जोड़ा है
टूटे दिल के तार सजन तुम बिन





अपरिचित


एक अपरिचित से किसी रोज़ मुलाकात हुई
जो थक गया था जीवन के सफर से

चलते चलते ऊब चुका था
जीवन की पतझड़ से

दिया सहारा  मैने थम उसने मेरा आँचल
एक रह के हमराही बने दोनों उसी क्षण

वीणा के तार झंकृत हो उठे
दिल में बजी शहनाई
जब दूर कही  कोयल ने कूक सुनाई

दोनों का मन झूमउठा
पर हाय री विडंबना
कर दिया जुदा  उसी क्षण

ला  पटका रेतीले तट पर
 जहाँ नं था कोई ठिकाना
वही  अपरिचित जो बना परिचित
फिर बन गया बेगाना





नारी की व्यथा

 नारी एक अबला है , असहाय है
नारी के उत्थान का दम्भ भरने वालो देखो
आज भी उसकी सांसे एक चीत्कार , सिसकी बनकर
रह गई है , वह समाज की सड़ी - गली
रस्मो रिवाज़ों की बेड़ियों में कैद है
उसके मुँह पर चुप के ताले है
इस पुरुष समाज से उसे क्या मिला
उत्पीड़न ,मानसिक यंत्रणा
जिसे वो आज तक झेल रही है
उसे आज  युगपुरुष की प्रतीक्षा है
जो उसे दासत्व से मुक्त करेगा
तब उसकी  हँसी शबनम की तरह
फूलो की तरह चाँदनी में बिखरेगी
नीले आकाश के खुले आँगन में
वो अपने मनु से कहेगी
ले चलो मुझे तुम अपने जहाँ में
एक नई दुनिया का निर्माण करने
जहाँ स्वतंत्रता होगी, शान्ति होगी
मुक्त वातावरण की सुरभि में
पंछी जैसे विहार करेंगे
मृग शावक जैसे कुलांचे भरते हुए
धरती पर नाचेंगे , गायेगे
दुःख का नामोनिशान मिटा देंगे




मेघ और सरिता

मेघ बरसता रहा फिर भी सरिता रीती रही
नयनो का सागर छलकता रहा पलकें सूनी रहीं

दिल झंझावत बन बिखरता रहा
वेदना के सुर निकलने लगे

उन अन्जानी कलियों के मुख से
जिन पर  कभी पराग आया था

मोह हुआ इक भंवरे को पर  वो भी खो गया
देखकर परागविहीन कलियों को निर्मोही हो गया

लेकिन कलियाँ ये देख अकुलाती रही
मन ही मन मुरझाती,  कुम्हलाती रही

क्या उसे कभी  भुलाना सम्भव   होगा
 सोचकर मन में विरह के गीत गाती रही





विरहिणी


जाने क्यों यह सोचकर  मेरा  मन
टूट टूट जाता है बिलखकर

की तुमसे अब  न मिल सकेंगे
न फिर वो बहारे आएगी

न बागो में कोयल कूकेगी
न चम्पा चमेली महकेगी

न बरखा गीत सुनाएगी
न रिमझिम मस्ती लाएगी

न फूलो पे पराग आएगा
न भंवरा ही गुनगुनाएगा

अपनी  प्रियतमा को न पाकर
केवल चकवा ही अश्रु बहायेगा


पिया मिलन की आस


सुनो मोरे  सजना कहे क्या ये कंगना
जी चाहे मेरा तेरे  ही  संग में रहना

मुझे बाहो में छुपा लो सीने से लगा लो
इस बेदर्द दुनिया से तुम मुझको बचा लो

अपना बना लो मुझे सबसे छुपा लो
बहक न जाऊं मै कही मुझको सम्भालो

तेरी आँखों में पिया इतना नशा है
पिए बिन ही दिल तो बेखुद हुआ है

कैसे होश आये जो न तुम इसको सम्भालो
डूबी जाऊं मै  तो  भंवर से तुम निकालो

प्रियतम तुम मुझको अपने अंग से लगालो
अपना बना लो मुझे दिल में बसा लो




मिलने की चाहत


उनसे मिलने की चाहत थी बहुत
दिल की मजबूरियों ने मिलने न दिया
सोचा था सुनाएंगे  दास्ता अपनी उनको
मगर दिल ने मुझे ऐसा करने न दिया

दिल की तमन्नाये दिल में दबी रह गई
ख्याले रुसवाई ने मुझे कुछ कहने न दिया
बात  होठो तक आते आते रुक गई
खुद को ही तन्हाइयो में भटकने दिया

सोचा था तेरे कदमो में सज़दा करेंगे आज
पूनम के चाँद ने भी धोखा हमे दिया
अपनी मजबूरियों में सिमटकर रह गए
दिल को  बेबसी का शिकवा करने न  दिया



मन एक आवारा बादल


मन तो है आवारा बादल पता नही कहाँ बरस जाए
कितनो को तड़पा दे और कितने प्यासे रह जाए

कितने हर भरे हो जाए कोई  तड़पे कोई मुस्काये
 किसी को बेचैन करदे ये राज़ समझ न आये

क्या पता मंजिल की तलाश में खुद अपना ही
सब कुछ गवा बैठे कोई तो इसे समझाये

एक घरोंदा बनाये जिसमे वो सिमट  जाए
जीवन के हर दुःख भुलाकर  लौटके न जाए




जूही


जब तुम यहाँ थी खिली थी
अब झर  गई  जूही
तुम्हारे प्यार के पांवों पड़ी
और तर गई जूही
तुम्हारा लाँघकेँ चौखट चले आना
रौशनी का झपकना
फूटकर बहना
अब अँधेरे में पड़ा रहना
बिला जाना
बताता है किन मजबूरियों से
तंग आकर ,मर गई जूही
खिली थी ,झर  गई जूही






गम


लो चली  हवाएँ गम
जल गया आशियाँ

और धुँआ उठने लगा
चिंगारी शोला बनी

दिल में दर्द का सैलाब उमड़ा
जो अश्रु बन बह निकला

फिर किसी ने आसुओ को
रोकने की कोशिश की तो

तब  तक देर हो चुकी थी
वो तब  पराई हो चुकी थी






आखिरी तमन्ना


न जाने कैसा बोझ है सीने पर
फिर भी जिए जा रहा हूँ मै

दम घुट रहा है मेरा लेकिन
अपनी आहें सिये जा रहा हूँ मै

डर है मोजों का तूफ़ान में
किश्ती है मेरी मंझधार में

एक अभिशिप्त जिंदगी लेकर
वीराने सफर को चल पड़ा हूँ मै

न अब है चाह मंजिल की
न हमदम की जरूरत है

तमन्ना है तो बस इतनी
मौत की आखिरी हिचकी पर

तेरा ही नाम लब पर हो
तेरे कदमो में दम निकले





कौन हो तुम

कौन हो तुम जिसने मेरी मोहनिद्रा भंग करदी
सोई हुई पिपासा फिर से जागृत कर दी

फिर से वीणा के तारों को  छेड़ दिया
जो न जाने कबसे चुपचाप  रहे थे
अन्धकार में  जाने कबसे खो रहे थे

फिर से  समा बंध  गया सावन के गीतों का
वर्षा की फुहारें फिर से आंदोलित करने लगी
मन झूमने  लगा आँचल   लहराने लगा

शिवजी का जैसे आसन  डोल गया था
कामदेव के वाणों से मेरा मन डोला
तुम्हारे मृदु बेनो से सरल  चित्त से

तुम्हारे स्पर्श को पाकर जीवन में प्राण आये
जीवन का सूखा निर्झर फिर से बहने लगा
मन ये कहने लगा काश तुम पहले मिले होते

 तब मेरी भी  जिंदगी यूं गुलज़ार होती
जैसे बाग़ों में बहार खुशगवार होती
जैसे फूलों  पे शबनम की फुहार होती

 हम दोनों विचरते प्रकृति के प्रागण में
धरा भी हमे लखकर मुदित हो रही होती




 चरमसीमा


सभी बातों  होती है चरमसीमा , उससे आगे न  बढ़ो
ऐसा कहा किसी ने मुझको , जब मै हँसती ही रही

अपनी बीती व्यथा भूलकर करुण कथा सुनकर
 न जब कोई पसीजा , जब किसी का दिल  दुखा

 अपने ही गम पर हँसी आ गई वीराने में बहार आ गई
मैने सोचा सुख दुःख  मिलन जीवन से क्या घबराना

जब तक न खुदा अपनी नज़र से दुनिया  को देखेगा
तब तक इस धरती पर कोई भी न कभी सुखी होगा

आखिर हर बात की होती है चरमसीमा जिसे
लांघकर कब तक कोई किसी को दुःख देगा

यही सोचकर जब मै हँसी तो किसी ने टोका
हर बात की होती  है चरमसीमा आगे न बढ़ो



मन की उलझन


न जाने मन की उलझन क्यों
सिमट आती है चेहरे की रेखाओ पर
भाग्य की विडंबना बन जिसके धुंधलके से
आच्छादित हो किसी का दिल रो उठा

हृदय चीत्कार कर  उठा
बर्फ की ठंडी हवाओ की तरह
लू में तपती रेट सी  बन गई सरिता की तरह
तब अनजाने डगमगाते कदम बढ़े उस  ओर
लेकिन मन व्याकुल हो उठा

देखकर मृग तृष्णा रूपी सरिता को
जो फिर से अपने आँचल में सिमट आई थी
और बाँध  उमड़ते सावन को
अपनी आँखों के दीपक प्रज्वलित करके
भुला  दिया था बीते क्षणों की मधुरता को

सोचती हूँ ये मकड़ी का जाला
क्या कभी मिट सकेगा
 कभी वह विहान भी आ सकेगा
जिसके खुले गवाक्षों से पंछी
स्वच्छ्न्द  उड़ सकेगा सीमा की ओर



मुस्कुराते रहो


मुस्कुराते रहो  गुनगुनाते रहो
जिंदगी गीत है इसको गाते रहो

             सोचो साथ तेरे और क्या जाएगा
              ख़ुशी का हर लम्हा न भुला पायेगा
              मुस्कुरा  के गमों को भुलाते रहो

कारवां वक्त का यूं गुजर जाएगा
मुस्कुराओगे बचपन लौट आएगा
मुस्कुराहटों में हर पल बिताते रहो




तेरी पलकें

मुस्कान से भरी तेरी उनींदी पलकें
जी चाहता है यूं ही रहें खुली पलकें

                 कभी हँसके मुझे बुलाती है
                  कभी हँसके जी जलाती है
                   न जाने कितना ये सताती है

फिर भी दुआ मांगता हूँ सलामत रहे तेरी पलके
मेरी राहो में सदा मुस्कुराती रहे तेरी पलके

                        तेरे अधरों पर मुस्कान रहे
                        दिल  तुझपे मेरा कुर्बान रहे
                         न हो अश्को से भरी पलके

मुस्कान से भरी तेरी उनींदी पलके
जी चाहता है यूं ही रहे खुली पलकें



प्रेम का वरदान


ईश्वर हमको दो वरदान
नित्य करें हम अच्छे काम

दुखी न हो कोई इंसान
जब तक तन में हो प्राण

औरो के लिए जीना सीखें
पढ़लिखकर हम बने महान

प्रेम प्यार का दीप जलाएं
नफरत को हम दूर भगाए



न हँसो ऐ ज़माने वालो

न मुझपे आज  हँसना ऐ ज़माने वालो
प्यार में रोना भी पड़ता है हंसने वालो

कभी तुमने लगता है प्यार किया नही
तभी तो कभी दर्दे जुदाई सहा  नही
रुसवा होना पड़ता है  ज़माने  वालो

 कई लोग इस राह में शहीद हुए है
कई लोग एक दूजे के मुरीद हुए है
मरके भी अमर नाम है ज़माने वालो



तेरा रूठना

आज तुमसे दूर होकर मेरा दिल टूट गया
तू बिना बात ही मुझसे क्यों रूठ गया

तुमने जीवन भर साथ निभाने की कसम खाई थी
हर पल साथ जीने मरने की कसम खाई थी
तेरा हर वो किया  हुआ  वादा क्यों टूट गया

मैने भी न ये सोचा था दिल लगाने से पहले
कि रोना भी पड़ता है मुस्कुराने से पहले
अब  हँसने का ज़माना पीछे छूट गया

कभी ये न सोचा था तुम मुझे भूल जाओगे
न ये कभी विचारा तुम मुझपे सितम ढाओगे
 रूठे तुम तो सारा ज़माना मुझसे रूठ गया



जुदाई का दर्द



तुमसे दूर हुए तो जाना जुदाई क्या होती है
यह तो मौत से भी बड़ी सज़ा होती है

हर दिल को रोना पड़ता है
हर सुख को खोना पड़ता है
सुकून जो दिल का खो जाए अजब हालत होती है

धड़कने थम जाती है
नब्ज रुक जाती है
आँखे हर पल रहती है नम रुसवाई होती है

लोग तड़पने का मज़ा लेते  है
दुखी दिल को और दुखाते है
कसक दिल की फिर भी न कम होती है

आँखों में गुज़रे पल तैरते है
कानो में मीठे बोल गूंजते है
हर पल सताता है गम दुनिया सोती है




दिल है परेशां


 जमाने वालो न सताओ हमको , कि हम है खुद से परेशां
दिल टूटेगा फिर न जुड़ेगा , कि हो न जाए कहीं बदगुमाँ

हर शाख से पत्ता पूछेगा , गिरने का सबब जानेगा
हर हाल में फिर भी जीना है , लेना न और  इम्तहाँ

न की थी कोई  बेवफाई ,    जिसकी हमे सज़ा मिली
जाने न हम फिर भी , रहते है क्यों  यूं तन्हा  परेशां

 मंजिल की तलाश में , भटकते रहे मिली  न रहगुजर
न पाये अभी तक कहीं , हमने उम्मीदों के कोई  निशां




भूले भटके तुम आ  जाना


ये बुझे  दीप आशाओ के
प्रिय आकर तुम्ही जला जाना
कबसे है घोर प्रतीक्षा
साकार कभी हो जाना

                         भूले भटके तुम आना

मै चटक बन हूँ भटक रहा
युग युग से तुमको खोज रहा
तुम स्वाति बूँद बनकर प्रियवर
दो बूँद टपकाकर तृषा बुझाना

                         भूले भटके तुम आना

जीवन की घोर निराशा में
उज्ज्वल प्रकाश बन छा जाना
अपलक चितवन से अपनी
मेरे उर में अमृत भर जाना

                          भूले भटके तुम अाना




मांझी और किश्ती


खामोश निगाहो से मांझी
है देख रहा उस किश्ती को

               जो तट पर है आती जाती
               टकराकर कितनी मौजो से

तूफ़ान उमड़ता है जाता
आवाज़ न हमदम की आती

               हमदम मेरे आवाज़ तो दो
               तूफानों से मै टकरा जाऊँ

मिटते मिटते ही मै तेरी
किश्ती को पार लगा जाऊँ




ऐ जाने वाले


ऐ जाने वाले मुझको तुम
बस अपना प्यार दिए जाओ
कभी लौटकेआओगे फिर तुम
बस ये विश्वास दिए जाओ

                       मन बहलेगा मेरा  तो  कैसे
                       जब तुम आँखों से ओझल हो
                       भावों के व्याकुल निर्झर में
                       अपनी रसधार दिए  जाओ

तुम संबल और सहारा हो
इस दुर्गम पथ के हमराही
इस पथ को कैसे काटूँगा
आशा संसार दिए जाओ



अटल विश्वास


सागर से रूठी कभी लहर नही
खगवृंद न भूले नभ की डगर
मानव ने बांटी कटुता और गरल
सारल्य विश्वास बना अविचल

                सब कुछ ले छीन ये जग
                पर विशवास न खोने देना
                मेरा संबल अवलम्ब वही
                तुम और किसी को न देना

चाहे कूल हो परे  दोनों
पर समरसता  भरी हुई
कोकिल अपने पचम सुर में
आनन्द कथा कहती होगी





अंजाम



जाने वाले कुछ देर रुको
अंजाम जिंदगी बाकी है
जी भरके तुझको देख लूँ
इक रात क़ज़ा की बाकी है

                    इस बुझते जीवन को क्षण भर
                    तुम रुको क्षणिक संबल तो दो
                    देकर तुम अपनी निज पद रज
                    कुछ बात हृदय की बाकी है

उखड़ी उखड़ी सी सांसे है
दिल के अरमान तड़पते है
अंजाम ऐ हसरत सामने है
अंजाम ऐ चाहत बाकी है



प्राणों के  गीत सुना दो


कल्पना भी थक चुकी पर  गीत अधूरे
अब तुम्ही मेरे प्राणों के गीत सुना दो

                 प्राणों में है कम्पन
                 कम्पन में निराशा
                 नैनो में सजग सपने
                 सपनो में पिपासा

बुझ जाए न दीपक , आँचल में छुपा दो
अब तुम्ही मेरे प्राणो के गीत सुना दो

                आतप से गए मुरझा
                अर्चना  के ये फूल
                सूखे पड़े है कबसे
                आशा  के ये फूल

दो बूँद स्वाति बरसो ,कुछ प्यास बुझा दो
अब तुम्ही मेरे प्राणो के गीत सुना दो




जागृत सपने

मेरी  भी आँखे देख रही
कितने जागृत से सपने
जो आज विलग दूर हुए
कल पास बहुत होगे अपने

                    सुख दुःख के हम होगे साथी
                     हम संग संग साथ रहेंगे
                     जीवन के दुर्गम पथ पर
                     आशा औ  निराशा झेलेंगे


तुम उन्नत शिखरों पर
स्वत; ही चढ़ती जाओगी
मेरे गीतों को स्वर देकर
तुम मुझको अमर बनाओगी





विधवा


पता नही बाहर क्यों शोर हुआ
मै चौककर उठ खड़ा हुआ

बाहर किसी की अर्थी जा रही थी
जैसे किसी की दुनिया लूटी जा रही थी

उसका विधवा का  वेश न देखा गया मुझसे
कुछ समय पूर्व ही तो वो सुहागन बनी थी

आज उसकी बिंदिया पोंछकर चूड़ियाँ तोड़ी
उसका क्रंदन मुझसे न  देखा जा रहा था

परिवार के सब लोग उसे ही कोस रहे थे
हत्यारी ,पापिन , जाने क्या कह रहे  थे

तब इस  समाज से  मुझे घृणा होने लगी
जिसे सांत्वना चाहिए वो तिरस्कृत हो रही थी

क्या इसे कहते है अच्छा व्यवहार स्वतन्त्रता
उसे संबल दो,आश्रय दो जीने का अधिकार दो

इसे तभी कहेंगे समाजवाद की परिभाषा
तभी इस राष्ट्र का भी स्वरूप निखरेगा


सूर्योदय


जब सूरज ने आँखे खोली, उषा भी लज्जाई
मंद मंद कदमो से चलकर नदी किनारे आई
खोले अपने बंद केश बिखेरने लगी सुगन्धि
 साथ ही लाली बिखरी जब वो सद्य स्नाता;

                       नदी से बाहर निकली
                       रूप लावण्य था अप्रतिम
                      मानो स्वर्णसुन्दरी हो वो
                       तारागण भी लगे सिमटने
                        देखके उसके यौवन  को

फिर वो इठलाती बलखाने लगी
आई धरती के आँगन में
फूली सरसों ,  खिले  फूल
लगी वो सबको जगाने

                         चूमा उसने मुख शिशु का मंद मुस्कान से
                         जो चकित हो देख रहा था उसकी ओर
                         बीती विभावरी आई जागने की वेला
                         यही संदेशा  दिया उषा ने मुस्कान से







 दहेज -  युवकों के प्रति


ज़रा  सामने तो आओ युवको
तेरे  हाथो में अबला की लाज है
 आँख खोलके ज़रा तुम देखलो
समाज बर्बाद हुआ आज है


                             पहले तो लड़की बिकती थी पर
                            आज पुरुष भी बिकते है
                            गरीब की लड़की पढ़ी लिखी हो
                             किन्तु धनिक पर मरते है
                             धिक्कार जवानो तुम्हे आज है
                             क्या मुर्दा तुम्हारी आवाज है

देश को तो बर्बाद किया
इन दहेज के ठेकेदारो ने
 अबलाओं को बर्बाद किया
कितनो को जलाके ख़ाक किया
क्यों सोई तुम्हारी  है आत्मा
क्यों देखता नही परमात्मा




बाल  पर्व



कैसा है ये राष्ट्रीय बाल पर्व
जबकि देश में हज़ारो बच्चे
भिखमंगे ,भूखे, नंगे  है
 न  खाने को रोटी , कपड़ा
रहने को घर नसीब है
कुछ तो यतीम भी है
कोई कहे कैसे बाल पर्व मनाएं

असली महत्व तो तब है  इस पर्व का
 उन्हें जब पूर्ण अपनत्व प्यार  मिले
उन्हें अपनाकर यतीम होने से बचाएं
तभी भारत का वो कर्णधार बनेगा
उसे  अच्छी शिक्षा पेट भर रोटी
 उपलब्ध  होगी भूख महंगाई खत्म होगी
तभी भारत का हर बच्चा बाल पर्व मनाएगा




नूतन वर्ष


आया है नूतन वर्ष उसका अभिषेक करें

सूरज की लाली छाई हर उपवन हरियाली
मधुबन के फूलो से स्नेहसिक्त लेप करे

चन्द्रमा का टीका  बनाये तारो से उसे सजाएं
शूल चुनकर मग से काम कोई नेक करे

न हो कोई बेसहारा न कोई दुविधा का मारा
ज्ञान के दीपक जलाके दूर अविवेक करे

लाये भारत में खुशहाली हर घर में हो दिवाली
उर्वरता दिखे हर सू,  दूर हर क्लेश करे



नवीन राष्ट्र  का   निर्माण


आओ नवीन राष्ट्र का निर्माण हम करें

अरुणोदय की है बेला
मधुर मस्त नज़ारे
नवजागरण का गान गाये
नभ के ये तारे
बीती विभावरी दुखी मन शान्त हम करें

दुःख दूर  करे सबके
उजियारा फैलाये
घर घर जलाके दीप
अन्धकार हम मिटायें
हर उपवन फूलो से गुलज़ार हम करे

हो देश में खुशहाली
हर  भेद को मिटाएं
लेके उजाला ज्ञान का
अविवेक हम मिटाये
अब अमन के सुरों की झंकार हम करें




 युद्ध के समय -  भारतमाता के प्रति


माँ  तेरे  आँचल में जलती महानाश की ज्वाला
               महानाश की ज्वाला

माँ आहों से नही पिघलता
वज्र हृदय हिंसा का
तेरे दृग जल से न बुझेगी
ये ज्वाला विकराला


अस्ताचल से रक्तिम लपटे
लप लप लपक रही है
चिता धूम के बाल बिखेरे
उतर रहा तम काला

ये सड़ते शव जलते खंडहर
रक्तिम रोती  राहें
रणचंडी की तृषा अपरिमित
भर भर रीता प्याला





देश प्रेम


जागो भारत देश के वासी
तुमको भाग्य आजमाना होगा
सदियों से सो रही आत्मा
उसको आज जगाना होगा

थके हारे क्यों बैठे भाई
काहे चंता है घिर आई
जन जन की सुप्त चेतना से
राम मंत्र जपवाना होगा

मीठे मीठे बोल सुरों के
खोले कपाट सुप्त हृदय के
प्राण फूंक दे जो बाँसुरिया
उसको आज बजाना होगा

कौन बड़ा है कौन है छोटा
इसमें क्यों वक्त है खोता
एक राम से जुड़े सभी जन
ऐसा पाठ पढ़ाना होगा


एकता का नारा


इस देश को हिन्दू न मुसलमान चाहिए
हर मजहब जिसको प्यारा वो इंसान चाहिए

ये जाट पात के गहने
हम ऐसे भी न पहने
इक दूजे से टकराके
लगे खून की धारा बहने
हर आदमी को एकता का ज्ञान चाहिए

ये खान पान पहनावा
ये तो है सिर्फ दिखावा
हर मन है प्यार का प्यासा
ये सच्चाई का दावा
हर मन को सच्चे प्यार की पहचान चाहिए





बढ़े चलो


  बढ़े चलो बहादुरो बढ़े चलो

तुम भारत की संतान हो
तुम एकता का गान हो
पुकारती स्वतंत्रता
तम्ही तो उसकी आन हो
तुम सिंह से दहाड़ते बढ़े चलो

अमन  के दुश्मनो से न तुम डरो
हो विपत्तियाँ तो सामना करो
तोड़ो हर श्रृंखला
मिटा दो परतंत्रता
हर जुल्म को पछाड़ते बढ़े चलो




भारतभूमि तुझे नमन

हे भारतभूमि तुझको नमन
सर्वस्व मेरा तुझको अर्पण

रवि चन्द्र ज्योत्स्ना फैलाए
तारे खुद दीपक बन जाएं
तेरे वन्दन में झुके नयन

विस्तृत सागर भी लहराए
तह मोतियों से जगमगाये
ऋतुओं का सदा बदले क्रम

दिन रात पुष्प सुरभि लुटाए
योगीश्वर भी ध्यान लगाएं
संकोची मन छूना चाहे गगन

तेरी धरा से हुआ  उत्पन्न
विलीन हो तुझमे ही तन
तेरी सुवास से पुलकित मन




प्रकृति की छटा


 आया है मौसम बड़ा सुहाना
हरियाली है हर किसी खेत  में

वर्षा की फुहार   तन को भिगोकर चली गई
एक कम्पन सा वो मेरे मन में भर गई

हल्की हल्की धुप छितरी है आँगन में
वो देखो इन्द्रधनुष भी सलोना दमक रहा

भोला भाला शिशु बन आकाश से चिमट रहा
डरकर गिर न जाए आया धरती के पास वो

रंग बिरंगी चितवन से सबको निहार रहा
कभी बादलो में छिपकर अठखेलियाँ रहा

अब सूर्य चमका तो भय से दुबका इन्द्रधनुष
नन्ही नन्ही कोपलों पर ओस की बूंदे सूखने लगी

सरसो के फूलो से सूर्य का रंग दुगुना हो गया
कुमुद मुरझाने लगे कुमुदिनी सिमट गई

फिर संध्यारानी ने सितारों की ओढ़नी ओढ़ ली
चाँद को अपने माथे का टीका बना दिया था

 कुमुद  कुमुदिनी मुदित हुए रातरानी लगी मुस्काने
लगी अपनी सुगंध से पवन को वो  सराबोर करने




वसंत ऋतु


आई ऋतु वसंत बहार
छाई है मस्ती देखो जहाँ

शिखरों से देखो सूर्य झांक  रहा
अट्टालिकाओं से मन भांप रहा

मेघ उसे देखकर छितरा गए
तारागण भी घबरा गए

चलने लगी शीतल पुरवाई
जो लेके सुगन्धि है आई

कोयल डाली डाली चहकने लगी
आम्रमंज़री भी महकने लगी

देखो ज़रा प्रकृति की सुंदर छटा
सारा उपवन है फूलो से भरा

 युगलों का हास प्रमुदित करने लगा
 मधुर स्पंदन सा मन में भरने लगा



धुँआ


फिर धुँआ उठने लगा दिल की गहराइयो से
वेदना के विकल स्वरों ने संजोया था जिसे
 प्रकट हो गया अनायास धू धू करके
अश्रुधारा भी जिसे रोक न सकी
दिल की चिंगारियां भी शोले लगी
मेघ यूं बरसने लगा ज्वालामुखी सा फूटने लगा
पपीहा पी पी करने लगा
चातक  भी चातकी  को न पाकर
दिल में दुःख समोने लगा विरहाग्नि बढ़ी
दिल की  आह आंसू बन बह निकली
कोई वियोगी यह कहने लगा
गम को दिल पर मत झेलो
आयशा, तृष्णा मिटाकर दुनिया के सुख ले लो





तेरी  मुस्कान

तेरी मुस्कान में है जादूगरी
ढूँढा इसे मैने नगरी नगरी

तूने इसे कहाँ से पाया है बता
कहाँ से मिलती है पता तो बता
नही ढूंढ पाया गया सारी नगरी

दिल तो तेरी मुस्कान पर मिट गया
कैसे मै सम्भालूँ गया मोरा जिया
कहाँ इसे ढूढूँ फिरूँ नगरी नगरी



तेरी याद


फिर तुम्हारी याद आई ओ सनम
हम न भूलेंगे कभी तुम्हे मेरी कसम

रहते हो  तुम दिल में हमारे
तुम हो मुझे सारे जहाँ से प्यारे
जान भी निकलेगी तो चूमेगी कदम

दिल को रहता है हर  पल  तेरा इंतज़ार
जाने  वक्त आये लेके आओ तुम बहार
थाम लो बाहो में रुसवा हो जाये न हम

मुझे सुकूँ मिलता  है तेरी बांहो में
थामके बैठे है दिल तेरी राहो में
आना जल्दी आँखे हो  जाए न नम

तेरी आरजू तेरी तमन्ना और इंतज़ार
हर पल रहता है मेरा दिल बेकरार
देखना यूं ही तड़पके निकल जाए न दम
























 


















































     



























































































































                   




                

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तुम्हारी याद


न जाने क्यों तुम्हारा स्मरण होते ही भर आते है नैना मेरे
वो सागर वो  नदी का किनारा लो अब छूटा साथ तुम्हारा

ख़ुशी से बीते वो क्षण अब स्वप्न बन विचरते है
आँखों में सीप के मोती की तरह अश्रु  निकलते है

दिल का कोई कोना सूना पड़ गया परछाई बाकी है
इक चिंगारी दबी रह गई जो कभी  सुलग पड़ती है

थामकर हवाओ का दामन मैने इक खता  की
जिसकी मुझे सज़ा मिली हवाओ के झोंके से

वो दामन भी मुझसे अब छूट गया सांस बाकी है
न जाने कब दिल की धड़कन बंद हो जाये

और तमन्नायें दिल की सिसकती रह जाएं
 याद तुम्हारी दिल की दिल में ही रह जाए




जुदाई का दर्द


जुदा तुमसे होके जो करार दिल को न आये तो क्या करूँ
तुम्ही कहदो  कैसे तुम्हारा ख्याल दिल से जुदा करूँ
हर पल तुम मेरी नज़रो में समाये रहते हो
फिर भी तुम्हे देख न पाऊँ तो क्या करूँ
 तुम ओझल न होते हुए भी ओझल हो
दिल कहीं  और लग न पाये तो क्या करूँ
किससे कहूँ दास्ता मै अपनी
तुम्ही जो समझ न पाओ तो क्या करूँ
हाले दिल तो सबसे कहा नही जाता
तुम देखने न आओ तो क्या करूँ
तुम बिन जिंदगी वीरान है उजड़ा है चमन
जो तुम बहार न लाओ तो मै क्या करूँ
न जाने कब तुम मेघ बनकर बरसोगे
करार दिल जो न पाये तो क्या करूँ
दिन यूं ही कटता है रात रोते बीती है
मार डालेगा ये इंतज़ार में क्या करूँ



माँ शिशु


नन्हा शिशु मचल रहा था
अपनी माँ का ममत्व पाने को
धीरे धीरे घुटनों के बल रेंगकर
आया अपनी माँ के पास
माँ ने चुपके से आँखे बंद कर ली
तो शिशु रोमांचित हो उठा
लगा वो किलकारी भरने
धीरे से फिर  की गोद में लेटा
माँ ने उसे देखा, चूमा
पुलकित हो लगी स्तनपान कराने
शिशु भी दुलारने लगा माँ को
कभी कभी शरारत से अपने
नख और दाँत चुभोता उसके वक्ष में
माँ की हल्की सिसकारी को सुन
वो और प्रफुल्लित होता माँ
फिर उसे सीने से लगाती
थपकी दे प्यार से लोरी गाती



गुड़िया रानी


उछल रहे थे भालू बंदर
कब डमरू की ताल पे
गुड़िया रानी भागी आई
लगी झपकने पलको को

उनको देख देख खुश होती
बंदर मामी जब रूठ जाती
बंदर की शांमत आ जाती
फिर क्रोधित हो उसे घुड़कता
तब गुड़िया का जिया धड़कता


वो बंद कर लेती आँखों को
अपने नन्हे नन्हे हाथो से
भालू मामा उसे हंसाता
नाच नाच कर शोर मचाता


गुड़िया करती ता ता थैया
कहती झूमो नाचो भैया



वियोग


आज है फ़िज़ा उदास उदास
वीरान सी चुपचाप
दीवारे ख़ामोशी से घूर रही है
बहारो की रंगत किसी ने चुरा ली है
आँखों से निंदिया उडा  ली है
पिया बिन सब सूना पड़ गया
श्याम बिना जैसी सूनी ब्रज की गलियाँ
पेड़ से जैसी टूटी हुई कलियाँ
फूलो का जैसे मुरझाया हुआ रंग
वही आज है पी -बिन मेरे संग
कोयल की कूक , पवन की मस्ती
दिल की बस्ती, सब है वीरान
 गुमसुम शोक में डूबा हुआ है जहाँ





दिल की तमन्ना


दिल को तेरी ही तमन्ना और आरजू है
तू और किसी का हो जाए ये बात हमे मंजूर नही
कहदो कि तुम मेरे हो और रहोगे
अगर अब न कहोगे तो कब कहोगे
तेरे इकरार करने से मुझे तसल्ली होगी
तेरे इंकार से दुनिया ही अँधेरी होगी
तू ही तो मेरा चिराग है मै तेरी शमा हूँ
बिन तेरे तो मै इक बुझता दिया हूँ
तू ही मेरा सब्रो करार  तू ही नसीब मेरा
तुझसे जुदा होकर जिऊँ मै कैसे
बतादो मुझको मेरी जान ऐसे
कि तुम न कभी मुझसे जुदा थे न होंगे
तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे




तेरी याद


आज फिर दिल में इक उमंग सी उठ आई है
न जाने क्यों फिर से तेरी याद चली आई है

कभी कभी तो ये बहुत ही सताती है
कभी कभी तो ये बहुत ही रुलाती है
कभी तेरी बात पे हंसी मुझे आई है
न जाने क्यों तेरी हर अदा मुझे भाई है

तेरे शानो पे सर रखके मेरा सोना
तेरा मुझपे झुकना  ख्यालो में खोना
तेरे हाथो का उठना गेसू का बखर जाना
तेरा यूं तकना और मेरा शर्मा जाना
जाने क्यों प्रीत ने कली दिल की महकाई है




प्रेम का बंधन


केसा है ये प्रेम का बंधन
जिसमे बंध गया आज मेरा मन
जो पहले मुक्त गगन में
पंछी बन विचरता था
अब एक पिंजरे में कैद हो गया है
लेकिन ये कैद भी न मालूम
क्यों सुखद लगती है
पंछी को पिंजरे से मोह हो गया है
कितना विरोधाभास है
किन्तु ये सच है
उसे जिस मंजिल की तलाश थी
वो उसे मिल गई है
और अपने पाँव में खुद
उसने जंजीरे बांध ली है




चुप्पी



तुमसे कहना तो बहुत कुछ है , सोचती हूँ पर क्या कहूँ
जब तुम मन की हालत न समझो तो बेहतर है चुप रहूँ
ख़ामोशी ही असर करगी बोलकर क्यों बेअसर करूँ
तुमने न बोलने की कसम खाई क्यों ये गवारा करूँ
ये तन्हाई का सफर लम्बा है अकेले कैसे तय करूँ
जो तुम साथ चलो मेरे हमनशीं  तो मौत से भी न डरूँ
क्यों रुस्वा होने को छोड़ जाते हो कहीं  बेमौत न मै मरूँ
जब हमसफ़र बने तो तेरी बाँहों में ही क्यों न मरूँ
न तड़पता छोड़ यूँ मुझे क़यामत की घड़ी से मै डरूँ




बेवफा या बावफा


तुझे बेवफा कहना चाहती हूँ लेकिन
समझ में आता नही बेवफा या बेवफा कहूँ
तूने दिल का चैन चुराया
नींदे लूटी है रातो की
दिल के सोये अरमा जागे
खिल गई कलियाँ बागो की
लेकिन इसके बाद जो रूठा
लगा जैसे नैया से  किनारा छूटा
दिल के अरमा दबा दिए मैने
इक चुप्पी सी साध ली मैने
तेरे दूर जाने पर भी
न मुमकिन हुआ मुझे भूलना
तेरी ही यादो से सराबोर रहती हूँ
तेरे ख्यालो में खोकर सोचती हूँ
कि तुझे बेवफा कहूँ या बावफा कहूँ






बहारो के सपने


बहारो के सपने टूटकर बिखर गए
राह में राही मिले बिछुड़ गए

मंजिल न मिली भटके हुए कदम
छालों से रिस गए

जीवन में नकाब ओढ़े हुए
चलते चलते ठिठक गए

किसी अजनबी का साथ मिला भी तो
मोड़ गया गुज़र गए

सदके किसी के जिंदगी की भी तो
निर्मोही जाने किधर गए




लगन तुमसे लगा बैठे


लगन  तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा
तुम्हे अपना बना बैठे जो होगा  जाएगा

दीवाने बन गए तेरे तो फिर दुनिया से क्या मतलब
जो सबसे दिल हटा बैठे जो होगा देखा जाएगा

तुम्हारी बेरुखी से दिल ये मेरा टूट जाएगा
जीवन तुम पर लुटा बैठे जो होगा देखा जाएगा

कभी दुनिया से डरते थे छुप छुप याद करते थे
है अब पर्दा उठा बैठे जो होगा देखा जाएगा




काले मेघ घिर आये




काहे काले मेघ घिर आये
मोरा जिया क्यों देख हुलसाए
बुझी न तपन फिर भी
पपीहा तू क्यों पीहू पीहू गाये

मोर नाचने लगा आँगन
बिजली को हुआ कम्पन
नैनो की बरसात रिमझिम
पिया की याद सताए

सखी बंधनवार मत बांधो
कहि भेद न सारा खुल जाए
न भाये आज बदरिया काली
रहती जो पिया संग मतवाली

झूमती तितली रस पी डाली डाली
फूल देख भंवरा ललचाये
न जाने मोरे पिया न आये
मोरा मनवा क्यों घबराये

कैसे भेजूँ उसे संदेश न जानू
क्या लिखूँ पाती में न जानू
इक विरहन सरिता के किनारे
न जाने क्यों प्यासी रह जाए

पिघला जाए हे मोम सा तन
दीपशिखा की प्रज्वलित लौ
कहीं अनायास न बुझ जाए
न जाने क्यों मोरे पिया न आये




प्रतीक्षारत


उस अपरिचित स्वर का सम्मोहन फिर  मन को छूने लगा
फिर बांसुरी की तान पर आलाप प्रकृति में विलीन हुआ
उसकी सांसो का कम्पन मेरे हृदय का स्पंदन
उस वातावरण में तीव्र हुआ मेरी पलको का मूंदना
फ़िज़ा का खामोश होना लगा जैसे दूर कोई सरिता
किसी वीरान तट से मिलने को आतुर हो उठी है
उसने सब  तोड़ दिया मुझे अपने में समेट  लिया
रोम रोम से जैसे झरना फूट पड़ा लगा डूब जाउंगी
पता नही क्यों फिर भी तपती बालू रेत सी रीती रही
आखिर वो इक झोका ही तो था जो मुझे छूकर चला गया
दे गया अपनी यादे जी रही हूँ आश्वासनों पर
,मेरी  देह जर्जर हो चुकी है पर मन तो चिर युवा है
युगो युगो से उसकी राह में आँखे बिछाए प्रतीक्षारत हूँ




मौत - मेरी महबूबा

आ मेरी महबूबा
तेरी काली परछाई में
मै छुप जाऊँ
तेरे हाथो से
इस बेदर्द दुनिया से
मुक्त हो जाऊं
न जाने कबसे मैने
तेरे अाने की लौ लगाई है
जालिम तू कितनी देर से आई है
तेरी राह में  जर्जर देह हो गई
नेत्र ज्योति क्षीण हो गई
कंचनकाया मटमैली हो गई
दुनिया के दुखो से दिल
घबरा गया है आ मुझे अब
अपने आँचल की पनाह दे
अपनी गोद में माँ के समान
लोरी गाकर चिरनिद्रा में
सदा के लिए सुला दे









आत्मनिवेदन



अपने विषय में ज्यादा क्या लिखूँ  यही कहना चाहूंगी कि  एक मध्यम वर्गीय परिवार में दिल्ली में मेरा
जन्म हुआ फिर विवाहोपरांत जयपुर के ही होकर रह गए।   हिंन्दी साहित्य में मैने एम  ए  किया.
बाल्यकाल  से ही मेरी रूचि खेल कूद में कम हिन्दी साहित्य पढ़ने में अधिक  रही। लगभग सभी उच्च
श्रेणी के लेखको की पुस्तके मैने पढ़ी।   मेरे प्रिय उपन्यासकार शरतचन्द्र जी, प्रेमचंद जी , विमल मित्र जी थे
तथा कवियों में सूरदास जी, जयशंकर प्रसाद जी की रचनाये मुझे अधिक प्रिय है।

मुझे कविताये , भजन , लघुकथा आदि लिखने का  शौक बचपन से था। सन 2009  में सरकारी सेवा से
वरिष्ठ अनुदेशिका के पद से सेवा निवृत हुई।   समय का लाभ उठाते हुए मैने लिखने का प्रयास ज़ारी
रखा।   मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है  जिसमे गुरुदेव जी से संबंधित दोहे, भजन एवं माता जी की
भेंटें है।

अब कविताओ से संबंधित बिखरे पन्ने  प्रकाशित हो जा रही है जो आप सभी पाठको को
समर्पित है।   इस पुस्तक में मेरी कल्पना तथा भावनाओ का समन्वय देखने को मिलेगा।