तुम्हारी याद
न जाने क्यों तुम्हारा स्मरण होते ही भर आते है नैना मेरे
वो सागर वो नदी का किनारा लो अब छूटा साथ तुम्हारा
ख़ुशी से बीते वो क्षण अब स्वप्न बन विचरते है
आँखों में सीप के मोती की तरह अश्रु निकलते है
दिल का कोई कोना सूना पड़ गया परछाई बाकी है
इक चिंगारी दबी रह गई जो कभी सुलग पड़ती है
थामकर हवाओ का दामन मैने इक खता की
जिसकी मुझे सज़ा मिली हवाओ के झोंके से
वो दामन भी मुझसे अब छूट गया सांस बाकी है
न जाने कब दिल की धड़कन बंद हो जाये
और तमन्नायें दिल की सिसकती रह जाएं
याद तुम्हारी दिल की दिल में ही रह जाए
जुदाई का दर्द
जुदा तुमसे होके जो करार दिल को न आये तो क्या करूँ
तुम्ही कहदो कैसे तुम्हारा ख्याल दिल से जुदा करूँ
हर पल तुम मेरी नज़रो में समाये रहते हो
फिर भी तुम्हे देख न पाऊँ तो क्या करूँ
तुम ओझल न होते हुए भी ओझल हो
दिल कहीं और लग न पाये तो क्या करूँ
किससे कहूँ दास्ता मै अपनी
तुम्ही जो समझ न पाओ तो क्या करूँ
हाले दिल तो सबसे कहा नही जाता
तुम देखने न आओ तो क्या करूँ
तुम बिन जिंदगी वीरान है उजड़ा है चमन
जो तुम बहार न लाओ तो मै क्या करूँ
न जाने कब तुम मेघ बनकर बरसोगे
करार दिल जो न पाये तो क्या करूँ
दिन यूं ही कटता है रात रोते बीती है
मार डालेगा ये इंतज़ार में क्या करूँ
माँ शिशु
नन्हा शिशु मचल रहा था
अपनी माँ का ममत्व पाने को
धीरे धीरे घुटनों के बल रेंगकर
आया अपनी माँ के पास
माँ ने चुपके से आँखे बंद कर ली
तो शिशु रोमांचित हो उठा
लगा वो किलकारी भरने
धीरे से फिर की गोद में लेटा
माँ ने उसे देखा, चूमा
पुलकित हो लगी स्तनपान कराने
शिशु भी दुलारने लगा माँ को
कभी कभी शरारत से अपने
नख और दाँत चुभोता उसके वक्ष में
माँ की हल्की सिसकारी को सुन
वो और प्रफुल्लित होता माँ
फिर उसे सीने से लगाती
थपकी दे प्यार से लोरी गाती
गुड़िया रानी
उछल रहे थे भालू बंदर
कब डमरू की ताल पे
गुड़िया रानी भागी आई
लगी झपकने पलको को
उनको देख देख खुश होती
बंदर मामी जब रूठ जाती
बंदर की शांमत आ जाती
फिर क्रोधित हो उसे घुड़कता
तब गुड़िया का जिया धड़कता
वो बंद कर लेती आँखों को
अपने नन्हे नन्हे हाथो से
भालू मामा उसे हंसाता
नाच नाच कर शोर मचाता
गुड़िया करती ता ता थैया
कहती झूमो नाचो भैया
वियोग
आज है फ़िज़ा उदास उदास
वीरान सी चुपचाप
दीवारे ख़ामोशी से घूर रही है
बहारो की रंगत किसी ने चुरा ली है
आँखों से निंदिया उडा ली है
पिया बिन सब सूना पड़ गया
श्याम बिना जैसी सूनी ब्रज की गलियाँ
पेड़ से जैसी टूटी हुई कलियाँ
फूलो का जैसे मुरझाया हुआ रंग
वही आज है पी -बिन मेरे संग
कोयल की कूक , पवन की मस्ती
दिल की बस्ती, सब है वीरान
गुमसुम शोक में डूबा हुआ है जहाँ
दिल की तमन्ना
दिल को तेरी ही तमन्ना और आरजू है
तू और किसी का हो जाए ये बात हमे मंजूर नही
कहदो कि तुम मेरे हो और रहोगे
अगर अब न कहोगे तो कब कहोगे
तेरे इकरार करने से मुझे तसल्ली होगी
तेरे इंकार से दुनिया ही अँधेरी होगी
तू ही तो मेरा चिराग है मै तेरी शमा हूँ
बिन तेरे तो मै इक बुझता दिया हूँ
तू ही मेरा सब्रो करार तू ही नसीब मेरा
तुझसे जुदा होकर जिऊँ मै कैसे
बतादो मुझको मेरी जान ऐसे
कि तुम न कभी मुझसे जुदा थे न होंगे
तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे
तेरी याद
आज फिर दिल में इक उमंग सी उठ आई है
न जाने क्यों फिर से तेरी याद चली आई है
कभी कभी तो ये बहुत ही सताती है
कभी कभी तो ये बहुत ही रुलाती है
कभी तेरी बात पे हंसी मुझे आई है
न जाने क्यों तेरी हर अदा मुझे भाई है
तेरे शानो पे सर रखके मेरा सोना
तेरा मुझपे झुकना ख्यालो में खोना
तेरे हाथो का उठना गेसू का बखर जाना
तेरा यूं तकना और मेरा शर्मा जाना
जाने क्यों प्रीत ने कली दिल की महकाई है
प्रेम का बंधन
केसा है ये प्रेम का बंधन
जिसमे बंध गया आज मेरा मन
जो पहले मुक्त गगन में
पंछी बन विचरता था
अब एक पिंजरे में कैद हो गया है
लेकिन ये कैद भी न मालूम
क्यों सुखद लगती है
पंछी को पिंजरे से मोह हो गया है
कितना विरोधाभास है
किन्तु ये सच है
उसे जिस मंजिल की तलाश थी
वो उसे मिल गई है
और अपने पाँव में खुद
उसने जंजीरे बांध ली है
चुप्पी
तुमसे कहना तो बहुत कुछ है , सोचती हूँ पर क्या कहूँ
जब तुम मन की हालत न समझो तो बेहतर है चुप रहूँ
ख़ामोशी ही असर करगी बोलकर क्यों बेअसर करूँ
तुमने न बोलने की कसम खाई क्यों ये गवारा करूँ
ये तन्हाई का सफर लम्बा है अकेले कैसे तय करूँ
जो तुम साथ चलो मेरे हमनशीं तो मौत से भी न डरूँ
क्यों रुस्वा होने को छोड़ जाते हो कहीं बेमौत न मै मरूँ
जब हमसफ़र बने तो तेरी बाँहों में ही क्यों न मरूँ
न तड़पता छोड़ यूँ मुझे क़यामत की घड़ी से मै डरूँ
बेवफा या बावफा
तुझे बेवफा कहना चाहती हूँ लेकिन
समझ में आता नही बेवफा या बेवफा कहूँ
तूने दिल का चैन चुराया
नींदे लूटी है रातो की
दिल के सोये अरमा जागे
खिल गई कलियाँ बागो की
लेकिन इसके बाद जो रूठा
लगा जैसे नैया से किनारा छूटा
दिल के अरमा दबा दिए मैने
इक चुप्पी सी साध ली मैने
तेरे दूर जाने पर भी
न मुमकिन हुआ मुझे भूलना
तेरी ही यादो से सराबोर रहती हूँ
तेरे ख्यालो में खोकर सोचती हूँ
कि तुझे बेवफा कहूँ या बावफा कहूँ
बहारो के सपने
बहारो के सपने टूटकर बिखर गए
राह में राही मिले बिछुड़ गए
मंजिल न मिली भटके हुए कदम
छालों से रिस गए
जीवन में नकाब ओढ़े हुए
चलते चलते ठिठक गए
किसी अजनबी का साथ मिला भी तो
मोड़ गया गुज़र गए
सदके किसी के जिंदगी की भी तो
निर्मोही जाने किधर गए
लगन तुमसे लगा बैठे
लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा
तुम्हे अपना बना बैठे जो होगा जाएगा
दीवाने बन गए तेरे तो फिर दुनिया से क्या मतलब
जो सबसे दिल हटा बैठे जो होगा देखा जाएगा
तुम्हारी बेरुखी से दिल ये मेरा टूट जाएगा
जीवन तुम पर लुटा बैठे जो होगा देखा जाएगा
कभी दुनिया से डरते थे छुप छुप याद करते थे
है अब पर्दा उठा बैठे जो होगा देखा जाएगा
काले मेघ घिर आये
काहे काले मेघ घिर आये
मोरा जिया क्यों देख हुलसाए
बुझी न तपन फिर भी
पपीहा तू क्यों पीहू पीहू गाये
मोर नाचने लगा आँगन
बिजली को हुआ कम्पन
नैनो की बरसात रिमझिम
पिया की याद सताए
सखी बंधनवार मत बांधो
कहि भेद न सारा खुल जाए
न भाये आज बदरिया काली
रहती जो पिया संग मतवाली
झूमती तितली रस पी डाली डाली
फूल देख भंवरा ललचाये
न जाने मोरे पिया न आये
मोरा मनवा क्यों घबराये
कैसे भेजूँ उसे संदेश न जानू
क्या लिखूँ पाती में न जानू
इक विरहन सरिता के किनारे
न जाने क्यों प्यासी रह जाए
पिघला जाए हे मोम सा तन
दीपशिखा की प्रज्वलित लौ
कहीं अनायास न बुझ जाए
न जाने क्यों मोरे पिया न आये
प्रतीक्षारत
उस अपरिचित स्वर का सम्मोहन फिर मन को छूने लगा
फिर बांसुरी की तान पर आलाप प्रकृति में विलीन हुआ
उसकी सांसो का कम्पन मेरे हृदय का स्पंदन
उस वातावरण में तीव्र हुआ मेरी पलको का मूंदना
फ़िज़ा का खामोश होना लगा जैसे दूर कोई सरिता
किसी वीरान तट से मिलने को आतुर हो उठी है
उसने सब तोड़ दिया मुझे अपने में समेट लिया
रोम रोम से जैसे झरना फूट पड़ा लगा डूब जाउंगी
पता नही क्यों फिर भी तपती बालू रेत सी रीती रही
आखिर वो इक झोका ही तो था जो मुझे छूकर चला गया
दे गया अपनी यादे जी रही हूँ आश्वासनों पर
,मेरी देह जर्जर हो चुकी है पर मन तो चिर युवा है
युगो युगो से उसकी राह में आँखे बिछाए प्रतीक्षारत हूँ
मौत - मेरी महबूबा
आ मेरी महबूबा
तेरी काली परछाई में
मै छुप जाऊँ
तेरे हाथो से
इस बेदर्द दुनिया से
मुक्त हो जाऊं
न जाने कबसे मैने
तेरे अाने की लौ लगाई है
जालिम तू कितनी देर से आई है
तेरी राह में जर्जर देह हो गई
नेत्र ज्योति क्षीण हो गई
कंचनकाया मटमैली हो गई
दुनिया के दुखो से दिल
घबरा गया है आ मुझे अब
अपने आँचल की पनाह दे
अपनी गोद में माँ के समान
लोरी गाकर चिरनिद्रा में
सदा के लिए सुला दे
न जाने क्यों तुम्हारा स्मरण होते ही भर आते है नैना मेरे
वो सागर वो नदी का किनारा लो अब छूटा साथ तुम्हारा
ख़ुशी से बीते वो क्षण अब स्वप्न बन विचरते है
आँखों में सीप के मोती की तरह अश्रु निकलते है
दिल का कोई कोना सूना पड़ गया परछाई बाकी है
इक चिंगारी दबी रह गई जो कभी सुलग पड़ती है
थामकर हवाओ का दामन मैने इक खता की
जिसकी मुझे सज़ा मिली हवाओ के झोंके से
वो दामन भी मुझसे अब छूट गया सांस बाकी है
न जाने कब दिल की धड़कन बंद हो जाये
और तमन्नायें दिल की सिसकती रह जाएं
याद तुम्हारी दिल की दिल में ही रह जाए
जुदाई का दर्द
जुदा तुमसे होके जो करार दिल को न आये तो क्या करूँ
तुम्ही कहदो कैसे तुम्हारा ख्याल दिल से जुदा करूँ
हर पल तुम मेरी नज़रो में समाये रहते हो
फिर भी तुम्हे देख न पाऊँ तो क्या करूँ
तुम ओझल न होते हुए भी ओझल हो
दिल कहीं और लग न पाये तो क्या करूँ
किससे कहूँ दास्ता मै अपनी
तुम्ही जो समझ न पाओ तो क्या करूँ
हाले दिल तो सबसे कहा नही जाता
तुम देखने न आओ तो क्या करूँ
तुम बिन जिंदगी वीरान है उजड़ा है चमन
जो तुम बहार न लाओ तो मै क्या करूँ
न जाने कब तुम मेघ बनकर बरसोगे
करार दिल जो न पाये तो क्या करूँ
दिन यूं ही कटता है रात रोते बीती है
मार डालेगा ये इंतज़ार में क्या करूँ
माँ शिशु
नन्हा शिशु मचल रहा था
अपनी माँ का ममत्व पाने को
धीरे धीरे घुटनों के बल रेंगकर
आया अपनी माँ के पास
माँ ने चुपके से आँखे बंद कर ली
तो शिशु रोमांचित हो उठा
लगा वो किलकारी भरने
धीरे से फिर की गोद में लेटा
माँ ने उसे देखा, चूमा
पुलकित हो लगी स्तनपान कराने
शिशु भी दुलारने लगा माँ को
कभी कभी शरारत से अपने
नख और दाँत चुभोता उसके वक्ष में
माँ की हल्की सिसकारी को सुन
वो और प्रफुल्लित होता माँ
फिर उसे सीने से लगाती
थपकी दे प्यार से लोरी गाती
गुड़िया रानी
उछल रहे थे भालू बंदर
कब डमरू की ताल पे
गुड़िया रानी भागी आई
लगी झपकने पलको को
उनको देख देख खुश होती
बंदर मामी जब रूठ जाती
बंदर की शांमत आ जाती
फिर क्रोधित हो उसे घुड़कता
तब गुड़िया का जिया धड़कता
वो बंद कर लेती आँखों को
अपने नन्हे नन्हे हाथो से
भालू मामा उसे हंसाता
नाच नाच कर शोर मचाता
गुड़िया करती ता ता थैया
कहती झूमो नाचो भैया
वियोग
आज है फ़िज़ा उदास उदास
वीरान सी चुपचाप
दीवारे ख़ामोशी से घूर रही है
बहारो की रंगत किसी ने चुरा ली है
आँखों से निंदिया उडा ली है
पिया बिन सब सूना पड़ गया
श्याम बिना जैसी सूनी ब्रज की गलियाँ
पेड़ से जैसी टूटी हुई कलियाँ
फूलो का जैसे मुरझाया हुआ रंग
वही आज है पी -बिन मेरे संग
कोयल की कूक , पवन की मस्ती
दिल की बस्ती, सब है वीरान
गुमसुम शोक में डूबा हुआ है जहाँ
दिल की तमन्ना
दिल को तेरी ही तमन्ना और आरजू है
तू और किसी का हो जाए ये बात हमे मंजूर नही
कहदो कि तुम मेरे हो और रहोगे
अगर अब न कहोगे तो कब कहोगे
तेरे इकरार करने से मुझे तसल्ली होगी
तेरे इंकार से दुनिया ही अँधेरी होगी
तू ही तो मेरा चिराग है मै तेरी शमा हूँ
बिन तेरे तो मै इक बुझता दिया हूँ
तू ही मेरा सब्रो करार तू ही नसीब मेरा
तुझसे जुदा होकर जिऊँ मै कैसे
बतादो मुझको मेरी जान ऐसे
कि तुम न कभी मुझसे जुदा थे न होंगे
तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे
तेरी याद
आज फिर दिल में इक उमंग सी उठ आई है
न जाने क्यों फिर से तेरी याद चली आई है
कभी कभी तो ये बहुत ही सताती है
कभी कभी तो ये बहुत ही रुलाती है
कभी तेरी बात पे हंसी मुझे आई है
न जाने क्यों तेरी हर अदा मुझे भाई है
तेरे शानो पे सर रखके मेरा सोना
तेरा मुझपे झुकना ख्यालो में खोना
तेरे हाथो का उठना गेसू का बखर जाना
तेरा यूं तकना और मेरा शर्मा जाना
जाने क्यों प्रीत ने कली दिल की महकाई है
प्रेम का बंधन
केसा है ये प्रेम का बंधन
जिसमे बंध गया आज मेरा मन
जो पहले मुक्त गगन में
पंछी बन विचरता था
अब एक पिंजरे में कैद हो गया है
लेकिन ये कैद भी न मालूम
क्यों सुखद लगती है
पंछी को पिंजरे से मोह हो गया है
कितना विरोधाभास है
किन्तु ये सच है
उसे जिस मंजिल की तलाश थी
वो उसे मिल गई है
और अपने पाँव में खुद
उसने जंजीरे बांध ली है
चुप्पी
तुमसे कहना तो बहुत कुछ है , सोचती हूँ पर क्या कहूँ
जब तुम मन की हालत न समझो तो बेहतर है चुप रहूँ
ख़ामोशी ही असर करगी बोलकर क्यों बेअसर करूँ
तुमने न बोलने की कसम खाई क्यों ये गवारा करूँ
ये तन्हाई का सफर लम्बा है अकेले कैसे तय करूँ
जो तुम साथ चलो मेरे हमनशीं तो मौत से भी न डरूँ
क्यों रुस्वा होने को छोड़ जाते हो कहीं बेमौत न मै मरूँ
जब हमसफ़र बने तो तेरी बाँहों में ही क्यों न मरूँ
न तड़पता छोड़ यूँ मुझे क़यामत की घड़ी से मै डरूँ
बेवफा या बावफा
तुझे बेवफा कहना चाहती हूँ लेकिन
समझ में आता नही बेवफा या बेवफा कहूँ
तूने दिल का चैन चुराया
नींदे लूटी है रातो की
दिल के सोये अरमा जागे
खिल गई कलियाँ बागो की
लेकिन इसके बाद जो रूठा
लगा जैसे नैया से किनारा छूटा
दिल के अरमा दबा दिए मैने
इक चुप्पी सी साध ली मैने
तेरे दूर जाने पर भी
न मुमकिन हुआ मुझे भूलना
तेरी ही यादो से सराबोर रहती हूँ
तेरे ख्यालो में खोकर सोचती हूँ
कि तुझे बेवफा कहूँ या बावफा कहूँ
बहारो के सपने
बहारो के सपने टूटकर बिखर गए
राह में राही मिले बिछुड़ गए
मंजिल न मिली भटके हुए कदम
छालों से रिस गए
जीवन में नकाब ओढ़े हुए
चलते चलते ठिठक गए
किसी अजनबी का साथ मिला भी तो
मोड़ गया गुज़र गए
सदके किसी के जिंदगी की भी तो
निर्मोही जाने किधर गए
लगन तुमसे लगा बैठे
लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा
तुम्हे अपना बना बैठे जो होगा जाएगा
दीवाने बन गए तेरे तो फिर दुनिया से क्या मतलब
जो सबसे दिल हटा बैठे जो होगा देखा जाएगा
तुम्हारी बेरुखी से दिल ये मेरा टूट जाएगा
जीवन तुम पर लुटा बैठे जो होगा देखा जाएगा
कभी दुनिया से डरते थे छुप छुप याद करते थे
है अब पर्दा उठा बैठे जो होगा देखा जाएगा
काले मेघ घिर आये
काहे काले मेघ घिर आये
मोरा जिया क्यों देख हुलसाए
बुझी न तपन फिर भी
पपीहा तू क्यों पीहू पीहू गाये
मोर नाचने लगा आँगन
बिजली को हुआ कम्पन
नैनो की बरसात रिमझिम
पिया की याद सताए
सखी बंधनवार मत बांधो
कहि भेद न सारा खुल जाए
न भाये आज बदरिया काली
रहती जो पिया संग मतवाली
झूमती तितली रस पी डाली डाली
फूल देख भंवरा ललचाये
न जाने मोरे पिया न आये
मोरा मनवा क्यों घबराये
कैसे भेजूँ उसे संदेश न जानू
क्या लिखूँ पाती में न जानू
इक विरहन सरिता के किनारे
न जाने क्यों प्यासी रह जाए
पिघला जाए हे मोम सा तन
दीपशिखा की प्रज्वलित लौ
कहीं अनायास न बुझ जाए
न जाने क्यों मोरे पिया न आये
प्रतीक्षारत
उस अपरिचित स्वर का सम्मोहन फिर मन को छूने लगा
फिर बांसुरी की तान पर आलाप प्रकृति में विलीन हुआ
उसकी सांसो का कम्पन मेरे हृदय का स्पंदन
उस वातावरण में तीव्र हुआ मेरी पलको का मूंदना
फ़िज़ा का खामोश होना लगा जैसे दूर कोई सरिता
किसी वीरान तट से मिलने को आतुर हो उठी है
उसने सब तोड़ दिया मुझे अपने में समेट लिया
रोम रोम से जैसे झरना फूट पड़ा लगा डूब जाउंगी
पता नही क्यों फिर भी तपती बालू रेत सी रीती रही
आखिर वो इक झोका ही तो था जो मुझे छूकर चला गया
दे गया अपनी यादे जी रही हूँ आश्वासनों पर
,मेरी देह जर्जर हो चुकी है पर मन तो चिर युवा है
युगो युगो से उसकी राह में आँखे बिछाए प्रतीक्षारत हूँ
मौत - मेरी महबूबा
आ मेरी महबूबा
तेरी काली परछाई में
मै छुप जाऊँ
तेरे हाथो से
इस बेदर्द दुनिया से
मुक्त हो जाऊं
न जाने कबसे मैने
तेरे अाने की लौ लगाई है
जालिम तू कितनी देर से आई है
तेरी राह में जर्जर देह हो गई
नेत्र ज्योति क्षीण हो गई
कंचनकाया मटमैली हो गई
दुनिया के दुखो से दिल
घबरा गया है आ मुझे अब
अपने आँचल की पनाह दे
अपनी गोद में माँ के समान
लोरी गाकर चिरनिद्रा में
सदा के लिए सुला दे
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