दो पल भी हमको चैन से जीने न दिया
पीना जो चाहा ज़हर तुमने पीने न दिया
रुसवाई का डर था हमको पर अब क्या शिकवा
तुमने जो पर्दा है गिराया लोगों से क्या पर्दा
तुमने जो गम दिया वो तो किसी ने न दिया
काश हमारा दिल न होता हमसे ही बेगाना
अच्छा हुआ जो टूटा दिल ये तब हमने जाना
इक पल हँसना भी दिल की लगी ने न दिया
पास अगर तुम होते हमारे मुश्किल होती दूर
आज दूर है इतने कि तुमसे मिलने को मजबूर
मिलना भी चाहा अगर दिल ने ही शिकवा किया
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