हे पागल मनवा जाग ज़रा ये उमर गुज़रने वाली है
बिरथा न जीवन को तू बिता ये उमर गुजरने वाली है
झूठा ये जगत पसारा है , तेरे भीतर ठाकुर द्वारा है
तू मन की कुण्डी खोल ज़रा
झूठी इस जग की माया है , तू क्यों मानव भरमाया है
सतगुरु से प्रीती जोड़ ज़रा
ये दुनिया काल का फन्दा है , ये दुनिया गोरखधंधा है
मन पगले अब तू सोच ज़रा
न तेरा है न मेरा है , ये दुनिया रैन बसेरा है
दुनिया से नाता तोड़ ज़रा
झूठी जग की चतुराई है , कौड़ी भी काम न आई है
गफलत से मुख को मोड़ ज़रा
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