शनिवार, 23 मई 2015

गुरुदेव के भजन 391 (Gurudev Ke Bhajan 391)



हे  पागल मनवा जाग ज़रा ये उमर गुज़रने वाली है 
बिरथा न जीवन को तू बिता ये उमर गुजरने वाली है 

झूठा ये  जगत पसारा है , तेरे भीतर ठाकुर द्वारा है 
तू मन की कुण्डी खोल ज़रा 

झूठी इस जग की माया है , तू क्यों मानव भरमाया है 
सतगुरु से प्रीती जोड़ ज़रा 

ये दुनिया काल का फन्दा है , ये दुनिया गोरखधंधा है 
मन पगले अब तू सोच ज़रा 

न तेरा है न मेरा है , ये दुनिया रैन बसेरा है 
दुनिया से नाता तोड़ ज़रा 

झूठी जग की चतुराई है , कौड़ी भी काम न आई है 
 गफलत से मुख को मोड़ ज़रा 

__________________________________

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें