मनवा जपले बाबा का नाम ध्याले रोज़ सुबो और शाम
झूठी माया झूठी काया क्यों मानव इसमें भरमाया
तज दे अपनी झूठी शान ध्याले रोज़ सुबो और शाम
देखी जग की ये चतुराई न कोई सखा न कोई भाई
अंत में ले जाएं श्मशान ध्याले रोज़ सुबो और शाम
झूठे जग के सारे नाते कोई साथ निभा न पाते
काहे बनता तू अन्जान ध्याले रोज़ सुबो और शाम
न कोई तेरा है न मेरा ये जग जोगी वाला फेरा
पायेगा शान्ति जप ले नाम ध्याले रोज़ सुबो और शाम
नाम ही काटे जग के बंधन नाम छुडावे काल से रे मन
काहे बिरथा करे अभिमान ध्याले रोज़ सुबो और शाम
यौवन है इक ढलती छाया इसको कोई रोक न पाया
पाना चाहे जो कल्याण ध्याले रोज़ सुबो और शाम
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