बुधवार, 17 मई 2017

सवालों की बारिश लीजिए

तुम चाहते हो पत्ते भी गुनगुनाएँ
पेड़ों से पहले उनकी उदासी लीजिए

जीना मरना तो लगा रहेगा यहाँ पर
कुछ रोज़ ज़रा सुकून से जी लीजिए

अपने होंठों को सीकर तुम चुपचाप रहे
मगर खामोशी ने करदी मनादी लीजिए

हैरा थे अपने अक्स पे घर के तमाम लोग
शीशा चटकने पे सवालों की बारिश लीजिए
@मीना गुलियानी 

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