शनिवार, 23 सितंबर 2017

माता की भेंट ---04

किसका दर है कि ज़बीं आप झुकी जाती है 
दिले खुद्दार दुहाई कि खुदी जाती है 

आये जो तेरी शरण हमने तब ये पहचाना 
तेरे दर पे ही तो किस्मत जगाई जाती है 

ढाये दुनिया ने सितम हमको तुम न ठुकराना 
तेरे दर पे ही तो खुशियाँ लुटाई जाती हैं 

रूठे दुनिया चाहे सारी न तुम खफ़ा होना 
तुझे पाने को ही हस्ती मिटाई जाती है 

अपने दासों पे कर्म मईया आज फरमाना 
तेरे दर पे ही तो बिगड़ी बनाई जाती है 
@मीना गुलियानी 

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