मंगलवार, 23 जनवरी 2018

जो पिया न साथ में

आज हम फिर से निकले सुकूँ की तलाश में
चार कतरे आँसुओं के भी हो लिए साथ में

हम भुलाने तो चले हैं हर गुज़रे लम्होँ को
भूल कैसे पायेँगे जो दिन गुज़ारे साथ में

नामुमकिन लगता है तन्हा रहना तुझ बिन
वक्त ने फिर ला खड़ा किया ऐसे हालात में

लगता है आसमां भी गुमसुम सा बैठा हुआ
कोई तारा भी नज़र आता चंदा के साथ में

कहदो इन घटाओं से जाके बरस जाएँ कहीं
क्या मज़ा यूँ भीगने का जो पिया न साथ में
@मीना गुलियानी

1 टिप्पणी: