बुधवार, 24 जनवरी 2018

लब पर आती तो है

नदी की  कितनी चंचल है धारा
इस पार से उस पार जाती तो है

जीवन की लौ भी बुझने को है
सुलगाओ चिंगारी बाती तो है

भंवर में किश्ती डूबी तो क्या
टकरा के उस पार जाती तो है

न यूँ मायूस हो तुम इस कदर
रात के बाद भोर आती तो है

जिंदगी में बहुत दुःख झेले मगर
हँसी फिर भी लब पर आती तो है
@मीना गुलियानी 

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